s.c. bose |
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1 अप्रैल 1921 को उन्होंने सिविल सर्विस से अपना नाम वापस ले लिया क्योंकि वे अंग्रेजी सत्ता के समक्ष उसकी निष्ठा की शपथ नहीं लेना चाहते थे|
1921 में ही चितरंजन दास को पत्र लिखकर उन्होंने कांग्रेस की मंशा स्पष्ट करने व प्रबलता के साथ आजादी का पक्ष रखने की बात कही जब उन्हें अपनी मां का एक पत्र मिला जिसमें उन्होंने लिखा था वह महात्मा गांधी के आदर्शों को श्रेष्ठ मानती हैं”, तब जाकर सुभाष को थोड़ी सी सांत्वना प्राप्त हुई कि घर वाले भी उनके इस निर्णय में उनका साथ देंगे| 1921 में भारत आकर सबसे पहले गांधी से मिले उसके बाद गांधी ने उन्हें चितरंजन दास से मिलने के लिए प्रेरित किया और चितरंजन दास से मिलते ही उन्हें ऐसा लगा कि उन्हें उनका राजनीतिक गुरु मिल चुका है| लेकिन जल्दी कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया ;जिसमें चितरंजन दास भी शामिल थे,अब दास का स्वास्थ्य लगातार खराब होने लगा तो बोस ने उनकी खूब सेवा की, तब लोग कहते थे 'दास कितने भाग्यशाली हैं कि आईसीएस बावर्ची उनकी सेवा कर रहा है”
1922-23 के बीच उन्होंने दास के नेतृत्व में फारवर्ड व आत्म शक्ति जैसे राष्ट्रवादी प्रेसों की बागडोर संभाली इसके बाद ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष बने फिर टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी की लेबर एसोसिएशन के प्रधान पद पर भी सुशोभित हुए और इस तरह धीरे-धीरे वह पूरे यूथ यूनियन के सबसे चहेते हीरो ही हो गए | उन्होंने एक सभा में भाषण देते हुए कहा था 'भारत को फिर से वैसा बनाना है कि वह विश्व को वही संदेश दे सके जो प्राचीन काल से विरासत रही है”
1927 में जब साइमन कमीशन भारत आया तो उसे काले झंडे दिखाए गया और इस विरोध को बंगाल में नेतृत्व किया सुभाष चंद्र बोस ने| फिर कांग्रेस ने भारत भावी संविधान बनाने के लिए 8 सदस्य कमेटी का गठन किया जिसमें सुभाष चंद्र बोस भी अहम सदस्य हुए|
अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाष को कुल 11 बार कारावास हुआ 1928 में जिस संविधान समिति ने रिपोर्ट में औपनिवेशिक राज्य का दर्जा देने की मांग की थी सुभाष ने उसका विरोध किया और उन्होंने कहा पूर्ण स्वाधीनता से कम कुछ भी नहीं|
फिर सुभाष ने नवंबर 1928 में दिल्ली में 1 स्वाधीन भारतीय संघ इंडिपेंडेंस ऑफ इंडिया की स्थापना की जिसका उद्देश्य कांग्रेस के अंदर ही युवा छात्रों में राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ाना तथा पूर्ण स्वाधीनता के लिए प्रेरित करना था| इस दौरान भी सुभाष ने हर संभव प्रयास किया कि कांग्रेस पार्टी में गुटबाजी ना हो,वे हर मुद्दे पर सभी प्रमुख नेताओं से विचार विमर्श करते थे| लेकिन कई नेताओं की प्राथमिकता उस समय तक डोमिनियन राज्य की मांग की थी और सुभाष किसी भी तरह पूर्ण स्वराज्य ही चाहते थे इसी मुद्दे को लेकर कांग्रेस के बड़े नेताओं व सुभाष चंद्र के बीच खींचातानी प्रारंभ हो गई|
लेकिन 1929 आते-आते गांधी भी सुभाष के पूर्ण स्वराज्य पर एकमत हो गए और उन्होंने कहा यदि 31 दिसंबर 1929 तक ब्रिटिश सरकार ने होम रूल नहीं दिया तो 1 जनवरी 1930 से वे खुद सबसे प्रबल स्वाधीनतावादी हो जाएंगे अर्थात पूर्ण स्वाधीनता से कम कुछ भी नहीं|
तब अक्टूबर 1929 में वायसराय लॉर्ड इरविन ने घोषणा की कि डोमिनियन स्टेटस का दर्जा भारत को दिया जाएगा, इसके लिए सभी वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति में एक गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया जाएगा और यह सभी नेता साइमन कमीशन की मदद करेंगे;ताकि भारत के लिए एक संविधान का निर्माण किया जाए| तब सुभाष ने सबसे पहले अंग्रेजों की इस घोषणा का यह कह कर विरोध किया-'भारतीय संविधान भारत के लोगों के द्वारा चुने गए नेताओं द्वारा ही हो ना कि अंग्रेजों द्वारा चुने गए नेताओं द्वारा और यह सब स्वाधीनता न देने के लिए अंग्रेजों की कूटनीति है|'