“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

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ईश्वर और मानव में जंग

   हमारे समाज और संसार का निर्माणकर्ता ईश्वर को माना गया है। कहा जाता है यूनानी ईश्वर ज़्यूस ने जहाँ एडम और ईव को बनाकर धरती पर भेजा। आर्य देवताओं ब्रह्मा ने माया और मनु को धरती पर भेजा।  धीरे-धीरे इसी तरह संस्कृतियों का निर्माण हुआ। शुरूआती मानव बस्तियां बसने लगीं। मानव ने अपने-अपने भगवानों के मंदिरों की स्थापना की। लेकिन बीच में एक राजा गिलगमेश हुआ। जो मानव जाति की मृत्यु और दुःखों को लेकर परेशान था। वह प्रतापी राजा था। उसने जब सम्पूर्ण विश्व विजय के साथ अमृत्व जड़ीबूटी प्राप्त करने की घोषणा की, तो यूनानी ईश्वरों में हड़कंप मच गया।  देवी हेस्टिया और देवता अपोलो ने एक साथ आकर देवता ज़्यूस को इसकी जानकारी दी। ज़्यूस यह बात सुनकर तिलमिला उठे और उन्होंने गिलगमेश को रोकने के लिए आर्य देवताओं ब्रह्मा, इंद्र आदि से मदद मांगी।  उन्हें डर था कि इससे ईश्वर की महानता और डर मनुष्यों में खत्म हो जाएगा।



प्रतीकात्मक इमेज
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  इधर गिलगमेश ने धरती के दूसरे महान राजा का पता लगवाया तो उन्हें आर्यों के राजा भरत के बारे में पता चला। उन्होंने राजा भरत से मिलने का समय माँगा और झेलम के किनारे दोनों के मिलने का समय तय हुआ। दोनों के मिलने की खबर सुनते ही आर्य और यूनानी देवताओं में डर का माहौल बन गया। आखिरकार दोनों राजा मिले। भरत ने शानदार स्वागत किया। गिलगमेश ने भरत को अपनी सम्पूर्ण योजना बताई। साथ हीगिलगमेश कहा-भरत! देवता कितने भोग-विलासी हैं। केवल अपने सुख-विलास का सोचते हैं। इन्होने अपने अवैध पुत्र-पुत्रियों से देवलोक का निर्माण किया। जहाँ न तो ये कभी बीमार पड़ते हैं ना ही इनकी मृत्यु होती है। लाखों-लाख वर्षों तक ये भोग-विलास में डूबे रहते हैं। औरहमारा जब कोई प्रिय मित्र या सम्बन्धी मृत्यु की शैया पर होता है,तो बार-बार प्रार्थना करने पर भी उसको जीवन दान नहीं देते। गिलगमेश ने कहा हमने इनके मंदिर स्थापित किये,अपनी जनता से इनकी पूजा करने को कहा; बदले में ये हमें मृत्यु के अलावा कुछ नहीं देते।


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इधर ईश्वर लोक में भी विद्रोह हो गया और देवीयों ने अपने ऊपर हो रहे अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज उठा दी। देवी अथीना ने कहा देवता मात्र अपने भोग को पूरा करने के लिए हमें इस्तेमाल कर रहें हैं। इधर आर्यों के देवता ब्रह्मा अपनी पुत्री सरस्वती पर ही मोहित हो गए।सूर्य ने अपने भाई की बेटी से शादी कर ली। इंद्र ने दूसरे की पत्नी अहिल्या के साथ रुप बदलकर सम्बन्ध स्थापित किया। चन्द्रमा ने अपने गुरु की पत्नी का ही अपहरण कर लिया। ये सब बातें जब गंगा ने आकर दोनों राजाओं को बताया;तब राजा भरत ने गिलगमेश के साथ मिलकर मनुष्य जाति के कष्टों को खत्म कर, देवताओं के आतंक से मुक्ति दिलाने की ठानी।
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दोनों ने अपनी प्रजा को समझाना शुरू किया। प्रेमएक ऐसा गुण है जो मनुष्य-से-मनुष्य को जोड़ता है। देवताओं में यह नहीं होता अतः देवता केवल सम्बन्ध बनाने और विलास का लुप्त उठाने में ही लगे रहते हैं। मित्रता, इस संसार के सभी झगड़ों और लड़ाई का अंत कर देगी। देवता कभी एक -दूसरे से मित्रता कर ही नहीं सकते अतः सभी देवताओं में युद्ध होते रहते हैं। शांति,यह संसार और समाज के स्थायित्व के लिए जरूरी है। देवताओं में अमरता होने के बाद भी स्थायित्व नहीं है,अतः वे अपनों से ही लड़ते रहते हैं। यदि हम इन तीन गुणों को अपने सामज में स्थापित कर देंगे तो निश्चित ही इन देवताओं का भय हमारे समाज से खत्म हो जाएगा औरसमाज में केवल संपन्नता हो दिखेगी।


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अब तक राजा गिलगमेश को भरत ने अमरता की जड़ीबूटी की भी जानकारी दे दी। दोनों ने अपनी प्रजा को एक आदर्श समाज की शपथ दिलाई है और प्रजा ने भी अपने राजाओं से वादा किया हैं कि जब वे लौटकर आएंगे तो उन्हें स्वर्ग से भी अच्छा संसार देखने को मिलेगा। दोनों राजा अमरता की जड़ीबूटी की खोज में हिंद महासागर के अंदर से पातलोक में बैठे अली के पास जा रहें हैं। यह हजारों साल की यात्रा है। जब अली अपनी भूल सुधारकर पृथ्वीलोक पर राजा गिलगमेश और राजा भरत के साथ अमरता की जड़ीबूटी लेकर लौटेंगे तो निश्चित ही देवलोक का वैभव पृथ्वी के सामने सूक्ष्म नजर आएगा। तब तक हम अपने राजाओं को दिए गए वचन निभाएंगे। अपने समाज में प्रेम,मित्रता और शांति स्थापित करने का हर संभव प्रयास करेंगे। यही तीन गुण हैं जो मनुष्य को देवताओं से भी महान बनाते हैं।और देवताओं-मनुष्यों की इस जंग में मनुष्यजाति ही विजय प्राप्त करेगी।


(एक भटकते हुए लेखक की यह भटकी हुई बातें हैं, इस बात पर गौर न करें पढ़कर भूल जायें) 

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