“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

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लापोड़िया गांव से हमें सीखना चाहिए जिससे आज इज़रायल भी सीखता है, चौका सिस्टम ने आज इस गांव को बदल दिया

आज के समय में पूरा विश्व पानी की कमी से जूझ रहा है। ऐसी ही एक हालात का शिकार भारत का एक गांव भी हुआ करता था। लेकिन समय और लगन के साथ कायापलट करने वाले इस गाँव ने एक मिसाल पेश की। कहते हैं न ! एक अकेला इन्सान चाहे तो पूरे समाज और व्यवस्था को बदल सकता है। बदलाव की यह कहानी अब चरितार्थ हो रही है, और जहाँ हो रही है वो स्थान है राजस्थान का लापोड़िया गाँव। सूखाग्रस्त इस गाँव में इन दिनों हर तरफ पानी ही पानी नजर आता है। भरपूर पेयजल एवं सिंचाई के साधन होने की वजह से चारों तरफ हरियाली छायी हुई है। लापोड़िया के आस-पास के गाँवों की भी तस्वीर बदल गई। गाँव में पहुँचने पर हर घर के सामने पशु-धन मौजूद होता है, जो गाँव की खुशहाली का प्रत्यक्ष प्रमाण देता है। ग्राम पंचायत की हर बस्ती में अपना तालाब है। ये तालाब पानी से लबालब हैं। 

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फोटो : लक्ष्मण सिंह बनाजी जिनकी  मेहनत ने आज लापोड़िया गाव  की तस्वीर बदल दी  और यही  ग्रामीण नवयुवक मंडल लापोड़िया के संस्थापक भी हैं. (फोटो : unsung)  

जयपुर-अजमेर राजमार्ग पर दूदू से 25 किलोमीटर की दूरी पर राजस्थान के सूखाग्रस्त इलाके का एक गांव है - लापोड़िया। यह गांव ग्रामवासियों के सामुहिक प्रयास की बदौलत आशा की किरणें बिखेर रहा है। इसने अपने वर्षों से बंजर पड़े भू-भाग को तीन तालाबों (देव सागर, फूल सागर और अन्न सागर) के निर्माण से जल-संरक्षण, भूमि-संरक्षण और गौ-संरक्षण का अनूठा प्रयोग किया है। इस गाँव की यह तस्वीर कोई एक दिन में नहीं बदली है बल्कि इस बदलाव में लम्बा समय लगा और यह सम्भव हुआ एक नौजवान की कर्मयोगी प्रवृत्ति की वजह से। आज लापोड़िया गाँव विदेशियों के लिए रिसर्च का विषय बना हुआ है। 




राजस्थान की राजधानी जयपुर से अजमेर मार्ग पर निकलते ही रेगिस्तानी नजारा दिखने लगता है। हाइवे पर गर्मी के मौसम में धूल-भरी हवाओं से सामना होता है। करीब 80 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद दूदू कस्बे में पहुँचते हैं। यहाँ से करीब 10 किलोमीटर आगे जाने पर पडासोली कस्बा पड़ता है और फिर दाहिनी तरफ मुड़ते हुए लापोड़िया का रास्ता शुरू हो जाता है


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चौका सिस्टम यही है जिसकी आज इज़रायल जैसा देश  भी तारीफ कर रहा है , इसे बरसात से पहले गर्मी के दिनों में तैयार कर लिया जाता है जिससे बारिश का पानी बर्बाद न हो. (फोटो : टाइम्स ऑफ़ इंडिया )
करीब 15 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद रेगिस्तान में एक हरा-भरा अलग-सा नजारा दिखता है और यह नजारा है लापोड़िया गाँव का। इस गाँव में प्रवेश करते ही हरे-भरे वृक्ष दिखाई पड़ते हैं। हर खेत में मेड़बंदी। साथ ही खेतों के बीच करीब 10 फीट के चौकोर गड्ढे, जिसे स्थानीय भाषा में चौका नाम दिया गया है। यह चौका सिस्टम ही पेयजल स्रोत विकसित करने का नायाब तरीका है।




जिसने ये नायब तरीका अपनाया और पूरे लापोड़िया गाँव की सूरत बदली उनका नाम है श्री लक्ष्मण सिंह। 1977 में अपनी स्कूली पढ़ाई के दौरान गांव का एक नवयुवक लक्ष्मण सिंह गर्मियों की छुट्टियां बिताने जयपुर शहर से जब गांव आया तो वहां अकाल पड़ा हुआ था। उसने ग्रामवासियों को पीने के पानी के लिए दूर-दूर तक भटकते व तरसते देखा। तब उसने गांव के युवाओं की एक टीम तैयार की, नाम रखा, ग्राम विकास नवयुवक मंडल, लापोड़िया। शुरूआत में जब वह अपने एक-दो मित्रों के साथ गांव के पुराने तालाब की मरम्मत करने में जुटा तो बुजुर्ग लोग साथ नहीं आए। बुजुर्गों के इस असहयोग के कारण उसे गांव छोड़कर जाना पड़ा। कुछ वर्षों बाद जब वह वापस गांव लौटा तो इस बार उसने अपने पुराने अधूरे काम को फिर से शुरू करने के लिए अपनी टीम के साथ दृढ़ निश्चय किया कि अब कुछ भी करना पडे पर पीछे नहीं हटेंगे। कुछ दिनों तक उसने अकेले काम किया।

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आज चौका सिस्टम से पूरे लापोड़िया गाव की तस्वीर बदल चुकी है, अब यहाँ पर सूखा कभी नहीं पड़ता और साथ ही बाढ़ आने पर दिक्कत भी नहीं होती है. (फोटो : cse फोटो लाइब्रेरी)
लेकिन कुछ दिन बाद उनके काम, लगन और मेहनत से प्रभावित होकर एक के बाद एक गांव के युवा, बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं उससे जुड़ते चले गए। तब उनकी वर्षों की कठोर तपस्या पूरी हुई थी। पहले स्त्रियों को रोजाना रात को दो बजे उठकर पानी की व्यवस्था के लिए घर से निकलना पड़ता था। उनका अधिकांश समय इसी काम में व्यर्थ हो जाता था। किन्तु अब तालाबों में लबालब पानी भरने से पीने के पानी की समस्या से तो निजात मिली ही, क्षेत्र में गोचर, पशुपालन और खेती-बाड़ी का धन्धा भी विकसित होने लगा। गांव वालों ने उजड़ चुके गोचर को फिर से हरा-भरा करने का संकल्प लिया। एक समय पूरा गांव सूखाग्रस्त था लेकिन लक्षमण सिंह की इस ऊर्जावान तकनीक ने पूरे गाँव में एक नयी ऊर्जा का प्रवाह किया और लग गए अपने गांव का नक्शा बनाकर चौका पद्धति से पेड़ (विशेषकर देशी बबूल और कैर) लगाकर पानी का अच्छे तरीके से उपयोग करने में। 




 इसके बाद भूमि सुधार कर गाँव वालों ने मिलकर मिट्टी को उपजाऊ बनाया और गांव के बहुत बड़े क्षेत्र को चारागाह के रूप में विकसित किया। आज इस गोचर में गांव के सभी पशु चरते हैं। उधर गोपालन से दुग्ध व्यवसाय अच्छा चल पड़ा। परिवार के उपयोग के बाद बचे दूध को जयपुर सरस डेयरी को बेचा गया, जिससे अतिरिक्त आय होने लगी। इससे कितने ही परिवार जुड़े और आज स्थिति यह है कि 2000 की जनसंख्या वाला यह गांव प्रतिदिन 1600 लीटर दूध सरस डेयरी को उपलब्ध करा रहा है। जब भूख-प्यास मिटी तो लोगों का धयान शिक्षा व स्वास्थ्य की ओर भी गया। पिछले छ: वर्षों से आस-पास के गांव अकाल जैसी स्थिति से जुझ रहे हैं, किन्तु लापोड़िया में अन्न सागर से सिंचित फसल अकाल को हर बार झुठला देती है।  


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वो समय जब चौका बनाने के लिए पूरा गांव इकठ्ठा हुआ था।  इसे पानी यात्रा का नाम दिया गया था। ( फोटो : rainwaterharvesting.org )

आज का आलम यह है कि तेज से तेज वर्षा भी लापोड़िया गांव में आकर आराम करती है। धरती के नीचे, धरती के ऊपर सब जगह धीरे-धीरे भरती है और फिर यदि अगले साल किसी कारण बरसात कम हो, अकाल जैसी परिस्थितियां हों तो भी वह यहां महसूस नहीं होती। वहां के गांव के लोग कहते हैं कि  "हमें लगता था कि हमारा बड़ा तालाब हमारे पुरखों ने कुछ ज्यादा बड़ा बना दिया है। यहां की औसत बरसात में यह कभी पूरा नहीं भर पाता। लेकिन पुरखों ने इसे 10-12 वर्ष में एक बार आने वाली भारी वर्षा को संभालने के लिए बनाया था।"
लापोड़िया में कुल 1144 हेक्टेयर की जमीन पर करीब 200 घरों के 2500 से ज्यादा लोग रहते हैं। खेती और पशुपालन ही यहाँ का मुख्य पेशा है। इस गाँव में  1977 शुरू हुई बदलाव की बयार ने आज गांव को खुशहाल बना दिया है। गांव की प्रेरणा से आस-पास के गांवों के युवक काम देखने लापोडिया आए और लापोडिया के कुछ कार्यकर्ता दूसरी जगहों पर गए और लोगों के साथ अपने अनुभवों को आदान प्रदान किया। परिणामस्वरूप आज ग्रामीण विकास नवयुवक मण्डल का काम पाली, टोंक, जयपुर, दौसा, अलवर और नागौर सहित 400 से भी अधिक गांवों में चल रहा है और निरंतर प्रगति पर है।

source- india water portal



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