“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

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आखिर एक नेता की दाढ़ी को मीडिया ने इतना महत्वपूर्ण क्यों बना दिया (व्यंग्य)

कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद 5 अगस्त 2019 को वहां के अलगाववादी नेताओं को नजरबंद किया गया था। उसके बाद कुछ बदला हो या न बदला हो लेकिन एक बात तो तय हो गई कि वहां के नेताओं की दाढ़ी जरूर बढ़ गई है। उनका ये बेमिसाल बदलाव मीडिया ऐसे फैला रहा है, जैसे कि कोई सुनामी कश्मीर में आ गई हो।







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फोटो : उमर अब्दुल्लाह, बाएं - 4 महीने पहले और दाएं नई फोटो 

शायद उमर अब्दुल्ला को पहले नेतागीरी करनी थी इसीलिए उन्हें अपना चेहरा साफ रखना पड़ता था। जिससे वो सेक्युलर दिखें। काहे कि आजकल तो बीजेपी वाले कुछ ऐसे नेता हैं जो किसी को कपड़े से या तो किसी के पोहा खाने के अंदाज़ से भी लोगों का धर्म जान जाते हैं। गजब है न!






ऐसा वाला स्कैनर अगर हमारे एयरपोर्ट में लग जाए  तो किसी कस्टम ड्यूटी में लगने वाले पुलिस वालों की जरूरत ही काहे पड़ेगी! अब मीडिया वालों के पास जब कोई काम नहीं बचता तो ऐसी ही बचकानी हरकत करते हैं। किसी की दाढ़ी, नहीं तो किसी बॉलीवुड की एक्ट्रेस के बच्चे को उठा लेते हैं। अहां, गलत मत समझिएगा। एक्ट्रेस के बच्चे को एक्ट्रेस नहीं उठाती उनकी दाई मां होती हैं, वही उठाती हैं। लेकिन उनकी खबर को मीडिया उठाती है।

जो और जिसको भूल गया है, इंसान तो कभी न कभी हमारे खोजी पत्रकार इन सभी बातों को ढूंढ़ ही लेते हैं। अब आप ही बताइए उमर अब्दुल्ला को कौन याद कर रहा था, अभी! और उमर अब्दुल्ला की फोटो वहां से कैसे आई!

अब हो गया कुछ सेटिंग होगी! नहीं तो उमर अब्दुल्ला ने ही डीएसएलआर वाले को बुलवाया होगा कि भाई मेरी फोटो खींच दे। इतने दिन हो गए हैं कोई फोटो नहीं खींची, हुह... लानत है, ऐसे राजनेता बनने पर। 







भाई, खींच मेरी फोटो,तू खींच मेरी फोटो...



ऊपर से दाढ़ी भी बढ़ाई है और मैं इसे नहीं बनाऊंगा। भाई फैशन चल रहा है, आज कल न! और दबी वाली बात ये भी है कि यहां ठंड भी बहुत है, सोचा कि दाढ़ी बढ़ा लूंगा तो चेहरे में ठंड नहीं लगेगी और मम्मी बन्दर वाला टोपा लगाने के लिए भी नहीं डाटेगी। तो बस थोड़ी बहुत चर्चा हो जाए हमारी काहेकी दुख हो रहा है हमको इतना जो न्यूज में आते थे, आजकल तो कौनों पूंछिन नहीं रहा। हमको तो बिलीवइ नहीं हो रहा कि हम इस गोला के हैं भी कि नहीं! 

लेकिन इसमें भी एक दिक्कत है, कथित रूप से किसी भी गोदी मीडिया और ओरिजिनल मीडिया ने इसका विश्लेषण नहीं किया कि ये फोटो काहे से ली गयी है, मोबाइल से या कैमरे से ! 




खैर, हमें क्या; हम तो ठहरे फ़कीर और आज के समय फकीरी में कोई साथ नहीं देता। तात्पर्य यह है कि कोशिश तो बहुत की गयी इसे उठाने की, लेकिन बाग़-बाग़ के खेल में, ये दाढ़ी फल-फूल नहीं पाई। 





चेतावनी: यह सत्य घटना पर आधारित, एक व्यंग्य है। 





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