(भारत के विभाजन पर एक व्यंग्य आधारित ड्रामा,भाग-1)-
व्यंग्य: देश में आजादी की लड़ाई तेज़ हो गयी थी। अब केवल औपचरिकता रह गयी थी;अंग्रेजों के भारत छोड़कर जाने की। माउंटबेटन जो भारत-पकिस्तान के बीच बंटवारे की रस्म अदा कर रहे थे। प्रत्येक पक्ष की बात सुनते और धीरे-धीरे आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे थे। उन्हें डर था यदि भारत में दंगा भड़कता है और लोग आपस में लड़कर मरते हैं तो अंग्रेजी सरकार की पूरे दुनिया में बेज्जती होगी। आइये! उस समय के बंटवारे को व्यंग और सरल तरीके से समझते हैं।
व्यंग्य: देश में आजादी की लड़ाई तेज़ हो गयी थी। अब केवल औपचरिकता रह गयी थी;अंग्रेजों के भारत छोड़कर जाने की। माउंटबेटन जो भारत-पकिस्तान के बीच बंटवारे की रस्म अदा कर रहे थे। प्रत्येक पक्ष की बात सुनते और धीरे-धीरे आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे थे। उन्हें डर था यदि भारत में दंगा भड़कता है और लोग आपस में लड़कर मरते हैं तो अंग्रेजी सरकार की पूरे दुनिया में बेज्जती होगी। आइये! उस समय के बंटवारे को व्यंग और सरल तरीके से समझते हैं।
माउंटबेटन,जिन्ना और नेहरू एक कमरे में बैठे हैं। चाय की चुस्कियां ली जा रही हैं। सामने की टेबल पर कुछ नक़्शे और पेन रखे हैं। दो द्वारपाल कमरे के बहार दरवाजे पर कान लगाये;बार-बार कुछ सुनने का असफ़ल प्रयास करते हैं। तभी जिन्ना तेज़ से बोल उठते हैं -
"तुम लोगों को समझ में नहीं आ रहा है क्या ?हैदराबाद तो मेरा ही है। और वो पाकिस्तान में ही मिलेगा!"
नेहरू-" ये जिन्ना! गांजा फूंक कर आये हो का ? हैदराबाद हमारा है। "
माउंटबेटन- "आराम से फ्रेंड्स। तुम दोनों दो देशों के बड़े नेता हो। और जिन्ना तुम मछली बेंचने वाले की तरह मत चिल्लाओ। "
"माउंटबेटन साहब आप ही इसे समझाओ ना।और कैसे भी कर के बिरियानी का स्वाद चखवा दो, आप तो माशा-अल्लाह बड़े शातिर हो।”
"नो-नो जिन्ना,आई थींक नेहरू ठीक कह रहा है। जिन्ना तुम लाहौरी कवाब में ही खुश रहो।"
"सर! ये लाहौरी कवाब मुँह में जाते ही घुल जाते हैं और इनमे वो बात नहीं जो हैदराबादी बिरियानी में है।मेरी तो नवाब के साथ भी सेटिंग है।और आप चाहो! तो आपके लिए कुछ ठंडे-गर्म की व्यवस्था करवा देते हैं।'
"अरे! व्हाट आर यू टॉकिंग। तुम्हारा मतलब हम घूसखोर है?"
"मेरा वो मतलब नहीं था सर! आप तो शातिर हैं,शातिर। नेहरू तुम ही समझाओ न इनको।"
नेहरू - "देखो! जिन्ना मै एक बार के लिए मान भी जाऊं तो बापू नहीं मानेंगे।और बापू मान भी जाते हैं तो पटेल कभी नहीं मानेगा। वो तो बिरियानी खाने की पूरी तैयारी भी कर चुका है और हो सकता है कि वह नावाब को भी ठिकाने लगा दे।"
जिन्ना- अरे! साला पानी तो अब सर के ऊपर जा रहा है।अब तो लगता है! कि कुछ तिकड़म भिड़ाना पड़ेगा।
नेहरू- ये तुम्हारी बोली कैसे बदल गई।
जिन्ना- अरे! कल पूरा दिन राजेंद्र प्रसाद के साथ था तो शायद भोजपुरी मुँह से निकल जा रही होगी।
नेहरू- देखो! जिन्ना, न मेरा- न तुम्हारा। चलो बापू से पूंछते हैं ,जो वो कहेंगे वही होगा।
जिन्ना- (मन मे कुछ सोच रहे हैं) यार..... ठीक है लेकिन हैदराबाद तो लेकर रहूंगा।
( क्रमशः)
(पर्दा गिरता है। जिन्ना अभी भी कमरे में बैठे हैं । नेहरू और माउंटबेटन गाँधीजी से मिलने ।उनके निवास की ओर जा रहे हैं।)
2 टिप्पणियाँ
dhanyawad
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