“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

talk 0 talk

एड्स एक वैश्विक बीमारी है, जिसका उपाय अभी तक नहीं ढूंढा जा सका है | 2018 में दुनिया में हुई कुल मौतों में लगभग 770,000 मौतें एचआईवी संक्रमण से हुई हैं | लेख

एचआईवी वैश्विक बीमारी है जिसके बारे में जानना बेहद जरूरी हो जाता है। इसी बीमारी के बारे में लोगों को सत्रक करने और बचाव के उपाय और इससे होने वाली दिक्कतों से परिचय कारन के लिए डब्लूएचओ के द्वारा विश्व एड्स दिवस आयोजन किया जाता है। जो कि प्रतिवर्ष 1 दिसम्बर को होता है। 

image-of-world-aids-day-1-december-of-every-year
वर्ल्ड एड्स डे फोटो: पीसीआई ग्लोबल डॉट ऑर्ग 


















डब्लूएचओ की ही 2018 की रिपोर्ट अध्ययन करने पर पता चल पाया कि 2018 तक लगभग 32 मिलियन लोगों की जान एचआईवी के संक्रमण से गयी है। वैश्विक संस्था UNICEF के अनुसार 2018 में लगभग 2.8 मिलियन बच्चे और किशोर अवस्था वाले बच्चे HIV से संक्रमित पाए गए थे। WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार 2018 में दुनिया में हुई कुल मौतों में लगभग 770,000 मौतें एचआईवी संक्रमण से हुई हैं। जिनमे 670,000 मौतों में वयस्क और 100,000 बच्चे शामिल थे। साथ ही यदि एचआईवी संक्रमित व्यक्ति जो एचआईवी के साथ जीवित हैं उनकी संख्या वैश्विक रिकॉर्ड में देखी जाये तो लगभग पूरे विश्व भर  में 38 मिलियन लोग हैं, जिनमे कुल 1.7 मिलियन लोग वो हैं जो एचआईवी के नए शिकार बने हैं, जिनमें कुल 18.8 मिलियन महिलायें,17. 4 मिलियन पुरुष और 1.7 मिलियन बच्चे शामिल हैं। 

अगर हम भारत की स्थिति की बात करें तो पूरे विश्व में एचआईवी पीड़ितों की आबादी के मामलें में हमारा देश पूरे विश्व में तीसरा स्थान रखता है। यहां 15-20 लाख लोग एड्स से पीड़ित हैं और 1.50 लाख लोग वर्ष 2011-2014 के बीच इसकी वजह से मर चुके हैं। हमारे देश में कुल एड्स पीड़ितों में 40% महिलाएं इससे पीड़ित हैं।



एड्स क्या है ?


image-of-all-about-hiv-virus-attack
एचआईवी कैसे होता है (फोटो: एचआईवी डॉट ऑर्ग )
एड्स को Acquired Immune Deficiency Syndrome कहते हैं जो कि HIV (Human immunodeficiency virus) से होता है जिसके कारण मानव की प्राक्रतिक प्रतिरोधी क्षमता कमजोर हो जाती है। यानी HIV मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) को खत्म कर देता है। हमारे शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली का काम ही यही होता है कि शरीर को संक्रामक बीमारियों जो कि जीवाणु और विषाणु से होती हैं से बचाना। परन्तु HIV वायरस के कारण मनुष्य बीमारियों से लड़ने की ताकत खो देता है, इसलिए एड्स एक बीमारी ना हो के सिंड्रोम है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि अगर एड्स से पीड़ित व्यक्ति को कोई बीमारी हो जाए तो ज्यादातर देखा गया है कि वो बीमारी एड्स होने के कारन लाइलाज हो जाती है। इसलिए एड्स से पीड़ित मरीज एड्स के कारण नहीं मरता है बल्कि किसी अन्य बीमारी या संक्रमण या फिर दोनों के कारण उसकी मृत्यु हो जाती है।
एचआईवी को कैसे जाना जाता है ?
 सीडी 4 कोशिकाओं की गिनती से ये पता लगाया जा सकता है कि शरीर में इम्यून सिस्टम कितना स्ट्रोंग है? एक स्वस्थ मनुष्य में सीडी 4 कोशिकाओं की संख्या 500 से 1600 प्रति घन मिलीमीटर के बीच में होती है। एड्स से पीड़ित मरीज में इन कोशिकाओं की संख्या 500 प्रति घन मिलीमीटर से कम हो जाती है और इसलिए बैक्टीरिया, वायरस, कवक या प्रोटोजोआ के कारण मनुष्य के शरीर में संक्रमण होता रहता है।


एचआईवी/एड्स का इतिहास -
कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार एचआईवी वायरस सबसे पहली बार 19वीं सदी की शुरुआत में जानवरों में मिला था। इंसानों में यह चिम्पांजी से आया, 1959 में कांगों के एक बीमार आदमी के खून का नमूना लिया गया।  कई सालों बाद डॉक्टरों को उसमें एचआईवी का वायरस मिला और ऐसा माना गया है कि यह व्यक्ति एचआईवी से संक्रमित पहला व्यक्ति था। वैज्ञानिकों ने एचआईवी की उत्पत्ति को चिम्पांजी और सिमियन इम्यूनोडेफिशियेंसी वायरस (SIV) को माना। SIV एक एचआईवी के जैसा ही वायरस है जो कि बंदरों और एप (पहाड़ी बंदरों) की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर करता है। किन्शासा में संभवतः संक्रमित खून के संपर्क में आने से यह मनुष्यों तक पहुंचा। इस वायरस ने चिंपैंजी, गोरिल्ला, बंदर और फिर मनुष्यों को अपने प्रभाव में लिया फिर कैमरून में एचआईवी-1 सबग्रुप ओ ने लाखों लोगों को संक्रमित किया। साइंस जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भी वैज्ञानिकों ने वायरस के जेनेटिक कोड के नमूने का विश्लेषण किया है और इससे यह पता चला है कि इस बीमारी की उत्पत्ति किंशासा शहर, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो की राजधानी से हुई है। कांगो की राजधानी में तेजी से बढ़ती वैश्याव्रत्ति आबादी और दवाइयों की दुकानों में संक्रमित सुइयों का उपयोग इत्यादि कुछ कारणों में से हो सकते हैं। 
1960 के दशक में, एचआईवी अफ्रीका से हैती और कैरिबियन तक फैल गया जब औपनिवेशिक लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो से हैती पेशेवर लोग घर लौट के आए थे।  फिर वायरस 1970 के आसपास कैरिबियन से न्यूयॉर्क शहर और फिर एक दशक में सैन फ्रांसिस्को तक पहुंच गया। संयुक्त राज्य अमेरिका से अंतर्राष्ट्रीय यात्रा ने दुनिया भर में वायरस को फैलाने में मदद की। यद्यपि एचआईवी 1970 के आसपास संयुक्त राज्य अमेरिका में पहुंचा, लेकिन 1980 के दशक तक जनता के ध्यान में नहीं आया था। 
एड्स की पहचान 1981 में हुई थी। डॉक्टर माइकल गॉटलीब ने लॉस एंजिलिस में पांच मरीजों में एक अलग किस्म का निमोनिया पाया। डॉक्टर ने पाया कि इन सब मरीजों में रोग से लड़ने वाला तंत्र अचानक से कमजोर पड़ गया था। ये पांचों मरीज समलैंगिक थे इसलिए शुरुआत में डॉक्टरों को लगा कि यह बीमारी केवल समलैंगिकों में ही होती है। इसीलिए एड्स को ग्रिड यानी गे रिलेटिड इम्यून डेफिशिएंसी का नाम दिया गया। 
फ्रांस में 1983 में लुक मॉन्टेगनियर और फ्रांसोआ सिनूसी ने एलएवी वायरस की खोज की थी और 1984 के आसपास अमेरिका के रॉबर्ट गैलो ने एचटीएलवी 3 वायरस की खोज की थी। 1985 के आसपास ज्ञात हुआ कि ये दोनों वायरस एक ही हैं। इस कार्य के लिए मॉन्टेगनियर और सिनूसी को नोबेल पुरस्कार से 1985 में सम्मानित किया गया। 1986 में पहली बार इस वायरस को एचआईवी यानी Human immunodeficiency virus वायरस का नाम रखा गया। 
 तब से पूरी दुनिया में इसके बाद एड्स के बारे में लोगो को जागरूक करने के अभियान शुरू हो गए और 1988 से हर साल 1 दिसंबर को वर्ल्ड एड्स डे के रूप में मनाया जाता है। इस बार 2019 का थीम है: "Ending the HIV/AIDS Epidemic: Community by Community".
1991 में पहली बार लाल रिबन को एड्स का निशान बनाया गया, यह एड्स पीड़ित लोगों के खिलाफ दशकों से चले आ रहे भेदभाव को खत्म करने के लिए एक कोशिश थी जो आज भी पूरी तरह से सफल होती नज़र नहीं आती है। 1994 में, FDA ने पहले मौखिक (और गैर-रक्त) एचआईवी परीक्षण को मंजूरी दी, दो साल बाद, यह पहली होम टेस्टिंग किट और पहला यूरिन टेस्ट को मंजूरी दे दी गई। 1995 में नई दवाओं और antiretroviral therapy (ART) या highly active antiretroviral treatment (HAART) HAART की शुरूआत के कारण विकसित देशों में एड्स से संबंधित मौतों और अस्पताल में तेजी से गिरावट आई। फिर भी, 1999 तक, एड्स दुनिया में मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण था और अफ्रीका में मौत का प्रमुख कारण भी था।

IMAGE-OF-WORLD-DATA-OF-HIV-EPIDEMIC-2018
एचआईवी का वैश्विक डाटा फोटो साभार WHO/ UNAIDS
 2017 में, वयस्कों (15-49 आयु वर्ग) के बीच एचआईवी प्रसार अनुमानित 0.2% था। यह आंकड़ा अधिकांश अन्य मध्यम आय वाले देशों की तुलना में छोटा है, लेकिन भारत की विशाल आबादी (1.3 बिलियन लोगों) के कारण यह 2.1 मिलियन लोगों को है जो एचआईवी के साथ जीवित अवस्था में हैं।  कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत में एचआईवी/एड्स बीमारी का स्तर अब गिर रहा है। 2010 और 2017 के बीच नए संक्रमण में 27% की गिरावट आई और एड्स से संबंधित मौतों की संख्या में कमी हुई और 56% की गिरावट आई। हालांकि, 2017 में, 80,000 से नए संक्रमण 88,000 हो गए और 62,000 'यूएनएड्सएस डेटा 2017' के मुताबिक एड्स से संबंधित मौतों की संख्या बढ़कर 69,000 हो गई। 
भारत में एड्स की प्रमुख वजह है प्रवासी श्रमिक और दूसरे देशों में जानेवाले नौकरीपेशा लोग, असुरक्षित यौन संबंध और असुरक्षित रक्तदान। हांलाकि भारतीय सेना इसे आधिकारिक तौर पर नहीं स्वीकारती है लेकिन कुछ गैरसरकारी संगठनों और स्वैच्छिक संस्थाओं के अनुसार सेना में भी एड्स के मामले बढ़ते जा रहे हैं। खास तौर पर ऐसे सैनिक जो दूरदराज के इलाकों में तैनात हैं उनमें और उनसे एड्स के फैलने की आशंका रहती है। भारत जैसे देश में जहां कैंसर और डायबिटीज जैसी बीमारियां भी बड़ी चुनौती हैं वहां एड्स के निदान से ज्यादा जरूरी इसकी रोकथाम है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बजट का करीब पांच प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाता है। अगर नैको के आंकड़े देखें तो प्राथमिक उपचार से लेकर सेकेंड लाइन ट्रीटमेंट तक एक मरीज के उपचार में करीब 6500 से लेकर 28500 का खर्च आता है. लिहाजा एड्स का इलाज काफी मंहगा है। हांलाकि हाल के वर्षों में भारत में स्थानीय स्तर पर जेनेरिक दवाओं के उत्पादन से भी एड्स की रोकथाम में व्यापक सफलता मिली है।



यह लेख दिल्ली के मीडिया दरबार नामक हिंदी साप्ताहिक पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है। इस आर्टिकल के बारे में हमें कमेंट कर बातएं कि कैसा लगा और ऐसे ही आर्टिकल्स पढ़ते रहने के लिए हमें फेसबुकइंस्टाग्राम और ट्विटर पर लिखे और फॉलो करें।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ