“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

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सबरीमाला मंदिर का नाम तो बहुत सुना है लेकिन उसके बारे में आप जानते कितना हैं ?

सबरीमाला मंदिर के इतिहास की बात करें तो यह करीब 800 साल पुराना है और इस पर यह लिंग मतभेद भी दशकों पुराना है। इससे पहले सबरीमाला मंदिर की बात करें ये जान लेना ज़रूरी है कि भगवान अयप्पा कौन हैं? हिन्दू मायथोलॉजी के अनुसार भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे, दरअसल समुद्र मंथन के समय हरि यानी भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर लिया था जिससे हर यानी भगवान शिव मोहित हो गए थे और तब भगवान अयप्पा का जन्म हुआ था। भगवान हरी (विष्णु) के मोहिनी रूप और भगवान हर(शिव) के पुत्र होने के कारण इन्हे हरिहर के नाम से भी जाना जाता है। भारत में इनके सबसे ज़्यादा भक्त केरल में हैं, जहां कुछ लोग इन्हें बुद्धावतार भी मानते हैं, यहां प्रत्येक धर्म के लोगों के लिए स्थान है। अय्यप्पा के बारे में किंवदंति यह भी है कि उनके माता-पिता ने उनकी गर्दन के चारों ओर एक घंटी बांधकर उन्हें छोड़ दिया था। पंडालम के राजा राजशेखर ने अय्यप्पा को पुत्र के रूप में 12 वर्षों तक पाला। लेकिन भगवान अय्यप्पा को ये सब अच्छा नहीं लगा और उन्हें वैराग्य प्राप्त हुआ तब वे महल छोड़कर चले गए। कुछ पुराणों में अयप्पा स्वामी को शास्ता का अवतार माना जाता है और कुछ कथाएं यह भी कहती हैं कि इनका जन्म महिषासुर की बहन महिषासुरी (महिषी) का वध करने के लिए हुआ था। इन्हें भगवान अयप्पा के अलावा शास्ता,अयप्पन,मनिकांता नाम से भी जाना जाता है।
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सबरीमाला मंदिर जाने के लिए पवित्र सीढियाँ (फोटो: डिस्कवर इंडिया डॉट नेट ) 
सबरीमाला मंदिर कहां है और इसका नाम कैसे पड़ा?
कई मान्यताएं कहती हैं कि सबरीमाला मंदिर का नाम त्रेतायुग में भगवान राम को जूठे बेर खिलाने वाली शबरीमाता के नाम पर पड़ा है। केरल के पेरियार टाइगर अभ्यारण्य में स्थित इस प्रसिद्ध मंदिर में लगभग प्रत्येक वर्ष 2 करोड़ श्रद्धालु आते हैं। यह केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर की दूरी पर पंपा से करीब 4 से 5 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम घाट से पर्वतश्रृंखलाओं के घने वनों के बीच स्थित है। जो की लगभग समुद्र तल से लगभग 1000 मीटर ऊंचा है। यदि मलयालमी के तर्क से देखा जाए तो " शबरीमला" का अर्थ पर्वत निकलता है और वास्तविक रूप से यह स्थान सह्याद्रि पर्वतमाला से घिरे हुए पथनमथित्ता जिले में है। 

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सबरीमाला  के जंगल के रास्ते से मंदिर जाते हुए लोग  (फोटो :sabarimala.tdb.org.in)

स्थापना के पीछे की कहानी

मंदिर के निर्माण के बारे ने मंदिर की ही वेबसाइट पर दी गई जानकारी अनुसार, इस मंदिर का निर्माण राजा राजसेखारा ने कराया था, वही राजसेखरा जिन्होंने भगवान अयप्पा का बाल रूप में पालन पोषण किया था। भगवान अयप्पा पंपा नदी के किनारे बाल रूप में मिले रहे, राजा राजसेखरा उन्हें अपने साथ महल लाये और अपने पुत्र की भांति उनका पालन पोषण करने लगे। कुछ समय बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया और इधर राजा भगवान अयप्पा को बड़े पुत्र होने के कारण अपना राज्य सौंपना चाहते थे और रानी कि सहमति नहीं थी। एक बार रानी ने अपनी तबीयत खराब होने का बहाना बनाया और कहा कि उनकी बीमारी केवल शेरनी के दूध से ही दूर होगी और अयप्पा जंगल में दूध लेने चले गए। इसी दौरान उनका सामना एक राक्षसी से हुआ, जिसे उन्होंने मार दिया। खुश होकर इन्द्र देव ने उनके साथ शेरनी को महल भेज दिया। शेरनी को उनके साथ देखकर लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ। इसके बाद पिता ने अयप्पा को रहा बनाने के लिए प्रस्ताव रखा लेकिन अयप्पा ने मना कर दिया और अयप्पा ने पिता को दर्शन दिया और इस स्थान पर अपना मंदिर बनवाने को कहा। इसके बाद इस जगह पर मंदिर का निर्माण कराया गया।

भगवान् अयप्पा की मूर्ती  (फोटो:यूट्यूब )




मान्यता


कंबन रामायण, महाभारत के आठवें स्कंध  और स्कंदपुराण के असुर कांड में जिस शिशु रास्ता का उल्लेख है, अयप्पन उसी के अवतार माने जाते हैं। मान्यता यह भी है कि परशुराम ने अय्यप्पन पूजा के लिए सबरीमाला में मूर्ति स्थापित की थी कुछ लोग इसे राम भक्त शबरी के नाम से जोड़कर भी देखते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि करीब 700 से 800 साल पहले दक्षिण में शैव और वैष्णव के बीच वैमनस्य काफी बढ़ गया था तब उन मतभेदों को दूर करने के लिए श्री अय्यप्पन की परिकल्पना की गई दोनों के समन्वय के लिए इस धर्म तीर्थ को विकसित किया गया।

यहां ज्यादातर पुरुष भक्त ही जाते हैं महिला श्रद्धालु कम ही होती हैं और होती भी है तो बूढ़ी औरतें और छोटी कन्या है इसका कारण यह है कि श्री अय्यप्पन ब्रह्मचारी थे इसलिए यहां पर छोटी कन्या आ सकती हैं जो रजस्वला ना हुई हो या बुरी औरतें जो इससे मुक्त हो चुकी हैं। यहां मान्यता यह भी है कि अगर कोई व्यक्ति तुलसी और रुद्राक्ष की माला पहनकर व्रत रखकर सिर पर नैवेद्य से भरी पोटली जिसको इरामुडी भी कहते हैं लेकर पहुंचे तो उसकी मनोकामना ज़रूर पूरी होती है।

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