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गोटाभया राजपक्षा के साथ भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद और साथ में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी फोटो : द हिन्दू |
श्रीलंका में बीते 17 नवंबर को वहां राष्ट्रपति चुनने के लिए हुए मतदान का परिणाम आया और यह परिणाम पुराने राष्ट्रपति महेन्दा राजपक्षा के भाई गोटाभया राजपक्षा के पक्ष में आया है। गृहयुद्ध काल में विवादित रक्षा सचिव रहे गोटाभाया श्रीलंका के नये राष्ट्रपति होंगे। भारत और श्रीलंका के संबंध पौराणिक और ऐतिहासिक रहे हैं और पड़ोसी होने के नाते पूर्वाग्रह लगाए जा रहे हैं कि भारत और श्रीलंका के संबंध में राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर किस प्रकार के बदलाव आने वाले हैं। एक तरफ चीन की विस्तारवादी नीति के चलते श्रीलंका लगातार चीन के कर्ज में डूबता नजर आ रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत और श्रीलंका के बीच पिछले करीब 28 वर्षों से रिश्ते कुछ ठीक नहीं रहे हैं। गौरतलब है कि राजपक्षा परिवार का झुकाव चीन की ओर रहा है। महिंदा राजपक्षा जो कि गोटाभया के भाई हैं उन्होंने तमिल अलगाववादी युद्ध को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई थी, जिसके कारण वह सिंहली बौद्ध बहुल समुदाय के प्रिय बन गए थे। गोटाभाया उनके शीर्ष रक्षा मंत्रालय अधिकारी थे, जिन्होंने लिट्टे के खिलाफ सैन्य अभियान की निगरानी की थी। लिट्टे के निशाने पर रहे राजपक्षा 2006 में इस संगठन के आत्मघाती हमले में बड़ी मुश्किल से बचे थे। गोटाभाया, अपने बड़े भाई माहिंदा राजपक्षा के शासन काल में 2005 से लेकर 2014 तक रक्षा सचिव थे और रक्षा सचिव रहते हुए वह साल 2012 और 2013 में भारत दौरे पर आए हुए थे।
वर्तमान में श्रीलंका की स्थिति
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श्रीलंका का नक्शा (फोटो- ग्लोबल सिक्योरिटी डॉट ऑर्ग) |
बहुसंख्यक सिंहली बौद्ध जहां राजपक्षा परिवार को अपना नायक मानते हैं। वहीं, दूसरी ओर तमिल मूल के वैसे परिवार, जिनके परिवारजन श्रीलंका में हो रहे गृहयुद्ध के समय मारे गए थे या लापता हो गए थे, वो काफी नाराज़ दिखते हैं और उन पर अविश्वास का आरोप लगाते हैं। साथ ही पिछले वर्ष में भारत में चल रहे लोकसभा चुनाव के बीच कोलंबो और साथ ही और 2 स्थानों पर हुए आत्मघाती बम हमले में करीब 250 लोगों के मारे जाने पर श्रीलंका सरकार और भी सख्त हो चुकी है। बस यहीं से राजपक्षा परिवार को सत्तारूढ़ पार्टी पर निशाना साधने का मौका मिल गया और कहा कि तत्कालीन राष्ट्रपति सीरिसेना इस बम हमले को रोकने में नाकाम रहे हैं। साथ ही सीरीसेना ने संविधान में संशोधन करते हुए अब किसी भी राष्ट्रपति को केवल दो शासनकाल तक ही सीमित कर दिया। अल्पसंख्यकों ने इस बार के हुए चुनाव में राजपक्षा परिवार के विपरीत खड़े साजिथ प्रेमदासा को वोट दिया था और वो इसलिए क्योंकि वो उन्हें राजपक्षा परिवार से ज्यादा उदार प्रवित्ति का नेता मानते हैं। यहां मुस्लिम समुदाय के लोगों से बाकी के समुदाय वालों ने बात तक करनी बंद कर दी है। वो ईस्टर संडे में हुए बम धमाके से डरे हुए से हैं, यहां तक कि कोई मुस्लिम व्यक्ति की दुकान से सामान लेने में भी आपत्ति है। मुस्लिम समुदाय को जहां इन बातों से डर था ही, साथ ही गोटाभया के राष्ट्रपति बन जाने से अल्पसंख्यक अपने भविष्य को लेकर आशंकित होने लगे हैं। और शंका यह भी जताई जा रही है कि राजपक्षे धार्मिक और जातीय रूप से अल्पसंख्यकों के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं। इससे देश में जातीय और धार्मिक तनाव उभर सकता है। एक तरफ देखा जाए तो श्रीलंका की अर्थव्यवस्था काफी सुस्त है और 2020 में संसदीय चुनाव भी होने हैं। भ्रष्टाचार चरम पर है और जातीय तनाव भी है।
महिंदा राजपक्षा के समय भारत और श्रीलंका के बीच संबंध
भारत हमेशा से ही पड़ोसी देशों को सहयोगी मान कर आगे बढ़ने की कोशिश करता रहा है। जिससे राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विकास अबाधित होता रहे, लेकिन महिंदा राजपक्षा के शासन काल में भारत और श्रीलंका के बीच केवल दूरियां बढ़ी हैं। भारत और श्रीलंका के संबंधों में मतभेद की शुरुआत श्रीलंका के गृहयुद्ध के समय से ही हो गई थी। जहाँ एक ओर श्रीलंकाई तमिलों को लगता है कि भारत ने उन्हें धोखा दिया है, वहीं सिंहली बौद्धों को भारत से खतरा महसूस होता है। वर्ष 2009 में भी चीन ने श्रीलंका को लिट्टे के विरुद्ध लड़ाई के लिये हथियारों की आपूर्ति की थी जबकि उस समय भारत समीप के एक पड़ोसी देश के किरदार से आगे नहीं पहुँच पाया था। हालाँकि चीन से इस घनिष्ठता का यह मतलब नहीं था कि राजपक्षे भारत के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं चाहते थे। परंतु उनकी नीतियों में लगातार चीन को एक महत्त्वपूर्ण स्थान मिलता दिखाई दे रहा था। लेकिन 2015 में राजपक्षा परिवार के सत्ता से जाने के बाद सिरिसेना राष्ट्रपति बने और उन्होंने भारत से रिश्ते बेहतर करने की कोशिश की और राष्ट्रपति बनते ही भारत की ओर पहला दौरा किया। भारत, श्रीलंका के साथ नई विकास परियोजनाओं में शामिल हुआ। हाल ही में भारत और श्रीलंका के मध्य कोलंबो बंदरगाह पर ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल (East Container Terminal) बनाने को लेकर एक समझौता हुआ था, इसके कारण भारत आने वाला बहुत सा सामान कोलंबो बंदरगाह के रास्ते भारत पहुँचता है। यदि भारत की तरफ से संबंध की बात की जाए तो भारत ने श्रीलंका की दो बार मदद की है। एक बार तब जब श्रीलंका पर एक अमरीकी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के सामने पेश की गई थी लेकिन भारत ने श्रीलंका के ख़िलाफ़ वोटिंग का बहिष्कार किया था। श्रीलंका लगातार राजपक्षे परिवार के समय ही चीन के कर्ज तले दब चला आ रहा है। श्रीलंका ने हंबनटोटा बंदरगाह को विकसित करने के लिए चीन से भारी कर्ज ले रखा है। फिर कर्ज ना चुका पाने पर यह अहम बंदरगाह चीन को श्रीलंका ने 99 साल के लिए लीज पर सौंप दिया। फिलहाल अब उस बंदरगाह पर अभी चीन का अधिकार है और यह काम करने के किए चीन ने श्रीलंका को एक युद्धपोत भी तोहफे के रूप में दे रखा है। राजपक्षा परिवार चीन के इस मीठे रवैए में पड़ता जा रहा है और भारत के संबंधों को कमजोर करता जा रहा है। सब मिलाकर समझ जाए तो राजपक्षा परिवार ने भारत के विकास सहयोग को बढ़ावा ना देकर चीन को खुला आमंत्रण दिया है।
भारत श्रीलंका के बीच संबंध अच्छे कैसे होंगे
भारत और श्रीलंका के मध्य एक साझा संस्कृति है जो दोनों देशों को एक साथ जोड़ने का कार्य करती है। दक्षिण एशिया में महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय हितों के साथ एक प्रमुख एशियाई राष्ट्र होने नाते के भारत पर अपने निकटतम पड़ोस में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने की विशेष ज़िम्मेदारी है। कुछ बुद्धिजीवियों का कहना यह भी है कि राजपक्षे परिवार चीन का समर्थक ज़रूर है, परंतु वे भारत विरोधी नहीं है। पड़ोसी होने के नाते भारत और श्रीलंका दोनों को विकास के लिये एक दूसरे के सहयोग की आवश्यकता होगी। अतः यह आवश्यक है कि भारत और श्रीलंका एक मंच पर आकर विभिन्न मुद्दों पर विचार कर अपने द्विपक्षीय संबंधों को और मज़बूत करने का प्रयास करना होगा। गुटबाजी में ना पड़कर श्रीलंका को गुटनिरपेक्षता का सहारा लेना होगा। अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब श्रीलंका को विस्तारवादी नीति से ग्रसित चीन को अपने ही गृह का किराया देना पड़े।
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