“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

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महाराष्ट्र में नई सांप ,नेवले और बिल्ली की जोड़ी महीने भर आपस में झपटने के बाद एक साथ हो ली लेकिन संविधान का इस्तेमाल जैसे हुआ वो वर्तमान सत्ताधारकों पर सवाल उठता है।


महाराष्ट्र में नए गठबंधन का उदय (फोटो : bar &bench)

भारत लोकतांत्रिक राष्ट्र है इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन आज हम राजनीति में नियमों, नीतियों, सिद्धांतों, नैतिकताओं, उसूलों व चरित्रों के संकट से अनभिज्ञ होते दिखाई दे रहे हैं। हाल ही में हुए महाराष्ट्र के चुनाव की ही बात करें तो वहां स्पष्ट जनादेश एनडीए को मिलने के बाद भी सत्ता पाने की लालच के लिए बीजेपी और शिवसेना ने अपनी मुख्य विचारधाराओं को और अपनी नीतियों को ही ताक पर रख दिया था और शिवसेना ने बच्चों की तरह खाने के लिए दूध रोटी दिए जाने पर आधा आधा पाने के लिए झगड़ने लगी। यह राजनीति है यहां कुछ भी हो सकता है, लेकिन संविधान भी है तो उसकी भी धज्जी उड़ानी है। लेकिन इस प्रकार नीतियों को ताक पर रख कर चलने वाले राज नेता किसके विश्वास के पात्र हो सकते हैं? महाराष्ट्र में किसी के पास बहुमत ना होने के कारण राज्यपाल  भगत सिंह कोश्यारी की रिपोर्ट पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता है। राज्यपाल ने कहा कि सरकार गठन के लिए सभी प्रयास किए हैं, लेकिन उन्हें स्थायी सरकार बनने के लिए संभावना नहीं दिखती। लेकिन राज्यपाल अभी भी एक सवाल के घेरे में आते हैं कि जब बीजेपी को अपना बहुमत पेश करने के लिए 2 दिन दिए जाते हैं तब दूसरी पार्टियों को क्यों नहीं? खैर अभी तक में महाराष्ट्र में सत्ता पाने के लिए जो भी लड़ाई हुई है और जो भी घटनाक्रम चला है वह पूरी तरह से फ़िल्मी नाटक लगता है।



संविधान पर अमल केवल संविधान के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता। संविधान केवल विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपलिका जैसे राज्य के अंगों का प्रावधान कर सकता है। उन अंगों का संचालन लोगों पर तथा उनके द्वारा अपनी आकांक्षाओं तथा उनके द्वारा अपनी आकांक्षाओं तथा अपनी राजनीति की पूर्ति के लिए बनाए जाने वाले राजनीतिक सालों पर निर्भर करता है। दरअसल यह बात बाबा साहेब ने संविधान लागू होते ही कही थी। क्योंकि उन्हें यह अंदेशा था कि आने वाले दिनों में देश के संविधान की धज्जियां उड़ाई जाएंगी। उन्होंने संविधान के बारे में आने वाले समय के लिए और भी चेतावनी दी थी।


अपने राजनीतिक हित के लिए पार्टियां कुछ भी करने को तैयार हैं, संविधान क्या होता है? और नीतिगत निर्णय क्या है? इन सभी बातों को बिना गौर किये सारे कदम उठाए जा रहे हैं। इधर एनसीपी नेता शरद पवार और अजीत पवार अपना गठबंधन शिवसेना के साथ जोड़ रहे थे और अजीत पवार अचानक से बीजेपी खेमे में अपना पक्ष लेकर चले जाते हैं। और यह सभी बातें रातों रात ऐसे हुई कि किसी को पता भी नहीं चल पाया। यहां तक कि खबरों को सूंघ कर पहुंचने वाले पत्रकार भी इस मामले से अवगत नहीं हो पाए थे और यहां सुबह सुबह सभी को पता चलता है कि राष्ट्रपति शासन हट चुका है और मुख्यमंत्री की शपथ ले ली जाती है। यहां पर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की शक्तियों पर पुनः सवाल खड़ा होता है कि आधी रात को वो किस प्रकार से राष्ट्रपति शासन हटा सकते हैं। नियमों में उद्धृत है कि जब तक मंत्रिमंडल की सहमति का हो तब तक राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कोई भी निर्णय नहीं ले सकते हैं। लेकिन रात को ही बहुमत दिखाने की इतनी क्या जरूरत रही होगी? और 23 नवंबर की सुबह 5:47 पर केंद्र ने महाराष्ट्र में जारी राष्ट्रपति शासन हटाने की बात कह दी थी। इसी बात को विपक्षी दल असंवैधानिक करार दे रहे हैं। संविधान विशषज्ञ कहते हैं कि संविधान के नियमों के आधार पर बीजेपी और एनसीपी  का सरकार बनाना कोई ग़लत नहीं है परन्तु नैतिकता के आधार पर यह कार्य सही नहीं है। राज्यपाल के पास यह अधिकार होते हैं कि वह किसी भी दल को सरकार बनाने के लिए बुला सकते हैं, "उन्हें अगर लगता है कि कोई दल सरकार बनाने के लिए बहुमत साबित कर सकता है तो उसे वह निमंत्रण भेज सकते हैं। लेकिन बीजेपी पहले ही राज्यपाल के सामने सरकार बनाने से में कर चुकी थी। ऐसे में उन्हें दोबारा सरकार बनाने का मौका देना नैतिकता के आधार पर बिल्कुल सही नहीं है।"




महाराष्ट्र में 12 नवंबर से राष्ट्रपति शासन जारी था और 23 नवंबर की रात इसे हटाया गया और सरकार का गठन हो गया। इस मुद्दे पर ही सवाल उठाया जा रहा है कि राष्ट्रपति शासन हटाने के लिए कैबिनेट की मंजूरी की जरूरत होती है ऐसे में रात भर में कैबिनेट की मंजूरी कैसे ली गई?



इस सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि एलोकेशन ऑफ बिजनेस रूल्स के रूल नंबर 12 के तहत दिया गया या फैसला है और वैधानिक नजरिए से बिल्कुल ठीक है रूल नंबर 12 कहता है कि प्रधानमंत्री को अधिकार है कि वह एक्सट्रीम अर्जेंसी (अत्यावश्यक) और अनफॉरेसीन कंटिजेंसीज (ऐसी संकट की अवस्था जिसकी कल्पना न की जा सके) में अपने आप निर्णय ले सकते हैं।

लेकिन यदि ऐसी अत्यावश्यक बात को महाराष्ट्र की जमीन पर उतर कर देखा जाए तो यह बात पूरी तरह से सत्य नहीं है। और राज्यपाल पर सवाल भी यही उठाते हैं कि राज्यपाल ने केवल हस्ताक्षर को साक्ष्य मानकर कैसे मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की शपथ दिला दी? जबकि उनके समक्ष कोई भी विधायक प्रस्तुत नहीं थे!



तीन दिन बाद अजीत पवार एनसीपी के खेमे के विधायक और शरद पवार के भतीजे ने अपने डिप्टी सीएम पद से इस्तीफ़ा भी दे दिया और उसी दिन सुप्रीम कोर्टद्वारा आये आदेश के हिसाब से फ्लोर टेस्टिंग में विफल होने के डर से देवेंद्र फडणवीस ने भी इस्तीफ़ा दे दिया। फिर कई दिनों तक नाटक चलने के बाद फिलहाल अब हिंदुत्व की विचारधारा को अपना मुख माने वाली पार्टी शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र  के मुख्यमंत्री बन चुके हैं। वो भी अपने से पूरी तरह से अलग विचारधारा की पार्टी से !

सत्ता के मोहताज़ उद्धव, पवार और और कांग्रेस दल का गठबंधन तो हो गया है और सभी ने अपनी अपनी कुर्सी पाने की मिठाई भी खा ली है। देखना अब यह है कि ये सांप, नेवले और बिल्ली की जोड़ी कितने दिन तक सत्ता में रह पाएगी !


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