“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

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हम दिनों-दिन शिकार बनते जा रहे हैं -

 "जब इस धरती का अंतिम पेड़ कट जायेगा और जब संसार की अंतिम नदी भी जहरीली हो जायेगी; तब शायद हम समझ पाएंगे कि पैसों को नहीं खा सकते।"


बदलता पर्यावरण 
  पर्यावरण को लेकर पिछले तीन चार दशकों से खूब बातें हो रही हैं,कहीं-कहीं कुछ स्तर पर काम भी हो रहा है। लेकिन बातें ज्यादा और काम न के बराबर हो रहे हैं। कहीं अत्यधिक गर्मी सहन करनी पड़ रही है तो कहीं अत्यधिक ठंड। इतना ही नहीं, समस्त जीवधारियों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों का भी सामना करना पड़ रहा है। प्रकृति और उसका पर्यावरण अपने स्वभाव से शुद्ध, निर्मल और समस्त जीवधारियों के लिए स्वास्थ्य-वर्द्धक होता है, परंतु किसी कारणवश यदि वह प्रदूषित हो जाता है तो पर्यावरण में मौजूद समस्त जीवधारियों के लिए वह विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करता है।

पर्यावरण में प्रदूषण 
   जैसे-जैसे सभ्यता और समाज का विकास बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे  पर्यावरण में प्रदूषण की मात्रा भी बढ़ती ही जा रही है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनुष्य ने कई नए आविष्कार किए हैं जिससे औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की प्रवृत्ति बढ़ी है। जिसके अंधाधुन प्रवृति के कारण प्रदूषण अपने चरम स्तर पर पहुंचता जा रहा है। जनसंख्या वृद्धि के कारण मनुष्य दिन-प्रतिदिन वनों की कटाई करते हुए खेती और घर के लिए जमीन पर कब्जा कर रहा है। खाद्य पदार्थों की आपूर्ति के लिए रासायनिक खादों का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे न केवल भूमि बल्कि, जल भी प्रदूषित हो रहा है। यातायात के विभिन्न नवीन साधनों के प्रयोग के कारण ध्वनि एवं वायु प्रदूषित हो रहे हैं। मतलब अब हमारी प्रत्येक क्रिया हमारे पर्यावरण प्रदूषण की वजह बनती जा रही है।

पर्यावरण प्रदूषण
  विकास का शिकार होती नदी, मानव महत्वाकांक्षाओं का शिकार होती प्रकृति, बांध निर्माण से खत्म हो रही बायोडायर्वसिटी और अपने विनाश का अध्याय लिखने में अग्रसर स्वार्थी मानवजाति को, दरअसल पर्यावरण को बचाए रखने के लिए यह समझना होगा कि नदी किसी एक की नहीं है बल्कि नदी हम सबकी है और जब तक हम ये मान कर उसे नियन्त्रित करना नहीं छोड़ेंगे तब तक हम विकास के नहीं विनाश के पथ पर ही चलते रहेंगे। हमें समझाना होगा कि हमारा अस्तित्व तभी तक सुरक्षित है जब तक हमारा पर्यावरण सुरक्षित है। बड़े-बड़े हॉल और एयर कंडीशनर युक्त कमरों में बैठ कर पर्यावरण प्रदूषण के मुद्दे को नहीं सुलझाया जा सकता ,इसके लिए जमीनी स्तर पर कार्य करना जरूरी है।

वृक्षारोपण 
 भारतीय संस्कृति हमेशा से प्रकृति और मानव के सहअस्तित्व का प्रमाण रही है ,जिसे इस कथन से समझकर हम अपनी प्रकृति और अपनी रक्षा कर सकते हैं -
                                                  "माता भूमि पुत्रो अहं पृथिव्या।"

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