गोवा के लोकगीतों में राममनोहर लोहिया का नाम खूब प्रचलित है। एक गीत जो गोवा में काफी गाया जाता है "पहिली माझी ओवी, पहिले माझी फूल, भक्ती ने अर्पिन लोहिया ना।’’ कवि बोरकर की पंक्ति से सभी परिचित हैं ‘धन्य लोहिया, धन्य भूमि यह धन्य उसके पुत्र। "
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राम मनोहर लोहिया | |
गोवा जो अपने समुद्री स्थापत्य के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, आज के ही दिन 1961 में आजादी मिली अर्थात देश की आजादी के 14 वर्षों बाद। दरसल जब अंग्रेज देश छोड़कर मजबूरन जा रहे थे तो सभी नेताओं ने सोचा कि पुर्तगाली भी गोवा छोड़कर चले जाएंगे; लेकिन राम मनोहर लोहिया इससे सहमत नहीं थे। इसलिए बीमार होने के बावजूद लोहिया ने 1946 से ही गोवा में पुर्तग़ालिओं के विरूद्ध आंदोलन छेड़ दिया था। इस आंदोलन में हजारों गोवावासी शामिल हुए। कई सालों के संघर्ष के बाद 1961 में आखिरकार गोवा को आजादी मिली। ये एक दिलचस्प पहलू है कि भारत की धरती पर आने वाले पहले यूरोपवासियों में पुर्तगाली ही थे और भारत से सबसे अंत में जाने वाले भी पुर्तगाली ही हैं।
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आजादी की मांग करते लोग |
1510 से शुरू हुआ पुर्तगाली शासन गोवा के लोगों को 451 सालों तक झेलना पड़ा।भारतीय सेना के ऑपरेशन विजय के 36 घंटों के भीतर पुर्तगाली जनरल मैनुएल एंटोनियो वसालो ए सिल्वा ने "आत्मसमर्पण" के दस्तावेज़ पर दस्तख़त कर दिए, लेकिन ऑपरेशन विजय इस लड़ाई का अंतिम पड़ाव था। आज़ादी की अलख गोवा में डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने 1946 की गर्मियों में जलाई थी।
हांलाकि लोहिया कभी गोवा को बन्दूक और सैनिक ताकत के दम पर आजाद नहीं कराना चाहते थे ;वे हमेशा से गांधीवाद और सत्याग्रह के माध्यम से ही, किसी विषय का हल निकालना चाहते थे।
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सैन्य कार्रवाई |
भारत की इस सैन्य कार्रवाई का दुनिया भर के बड़े देश विरोध करने लगे, क्योंकि उन सब की ही नजर गोवा पर थी। जब गोवा की आजादी के लिए इन देशों ने भारत की सैन्य कार्रवाई के विरोध में मामला सुरक्षा परिषद में उठा दिया, तो भारत बैकफुट पर आ गया। लेकिन इसी बीच गोवा की आजादी के लिए रूस ने भारत के समर्थन में एक ऐसा दांव चला कि पश्चिमी गुट के देश देखते ही रह गए। दिसम्बर 1961 में रूस ने भारत के पक्ष में 99वाँ वीटो लगा दिया।
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सेना का विरोध करते कश्मीरी युवा |
सुरक्षा परिषद में युद्धविराम का प्रस्ताव लाया गया तो रूस ने इस प्रस्ताव को वीटो कर दिया और वक्त ने भारत में एक और कश्मीर बनने से देश को बचा लिया।
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