अगर कभी भी आपकी प्रेमिका आपसे दूर जाने की कोशिश करें तो एक बार जरूर उस मनाइएगा, और अगर वो ना माने तो उसे ये कविता ज़रूर ज़रूर सनाइएगा । हां, इस कविता के कवि हैं हमारे जाने माने कवि श्री हरिवंश राय "बच्चन" जी इसमें उन्होंने आपके प्रेम संबंध को मधुर बनाने का और आपको और भी नजदीक लाने का काम किया है।
आइए देखते इस प्रेम सिलसिले का कुछ अंश -
दूर कहां मुझसे जाएगी,
कैसे मुझ को बिसराएगी
कैसे मुझ को बिसराएगी
मेरे ही उर की मदिरा से तो प्रेयसी तू मदमाती है
सोच सुखी मेरी छाती है।
सोच सुखी मेरी छाती है।
मैंने कैसे तुझे गंवाया ,
जब तुझको अपने में पाया,
पास रहे तू किसी और के संरक्षित मेरी धाती है,
सोच सुखी मेरी छाती है।
जब तुझको अपने में पाया,
पास रहे तू किसी और के संरक्षित मेरी धाती है,
सोच सुखी मेरी छाती है।
तू जिसको कर प्यार वही मैं,
अपने में ही आज नहीं मै,
किसी मूर्ति पर फूल चढ़ा तू, पूजा मेरी हो जाती है,
सोच सुखी मेरी छाती है।
अपने में ही आज नहीं मै,
किसी मूर्ति पर फूल चढ़ा तू, पूजा मेरी हो जाती है,
सोच सुखी मेरी छाती है।
- श्री हरिवंशराय "बच्चन" ।
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