जब एक बार नेहरू संसद भवन की सीढ़ीसे उतर रहे थे तो एकाएक लड़खड़ाकर गिरने ही वाले थे कि एक सज्जन ने उन्हें सहारा देकर संभाल लिया।तब नेहरू के धन्यवाद से कृतज्ञ होकर उस सज्जन ने कहा "जब जब राजनीति लड़खड़ाय़ेगी तो साहित्य उसे सहारा देकर संभाल लेगा|"ये सज्जन कोई और नहीं प्रसिद्ध कवि 'रामधारी सिंह दिनकर' थे|कवि होने के अलावा रामधारी सिंह का एक परिचय और है वो ये कि वे बिहार से संबंध रखते थे।जी हाँ वही बिहार जो आज की राजनीति में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बना हुआ है|आज बिहार की राजनीति एक बदलाव के दौर से गुजर रही है और सबसे ज्यादा बदलाव वहां के लोगों के विचार और मत देने के तरीके में आया है।जहां 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने NDA के समर्थन वाली पार्टियों को पूर्ण बहुमत दिया तो वही 2016 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस समर्थन वाली सरकार को बहुमत देकर जिता दिया।लेकिन दोनों बार के चुनावों में अर्थात पहले 2014 के लोकसभा चुनाव और बाद में 2016 के विधानसभा चुनाव में बिहार के लोगों ने उसे चुना या उस पार्टी को चुना जिसने उनसे विकास का वादा किया,अर्थात कहने का मतलब यह है कि 2014 में जहां मोदी विकास का नारा लगाकर चुनाव लड़ रहे थे तो वहीं 2016 में नीतीश कुमार को विकास पुरुष के रूप यूपीए और उसकी संबंधित पार्टियों ने प्रस्तुत कर चुनाव जीत लिया।लेकिन असल कहानी बाद में शुरू हुई जब नीतीश कुमार ने यूपीए को छोड़कर फिर से एनडीए को ज्वाइन कर लिया और बिहार की जनता के बहुमत को ठोकर मारकर किनारे कर दिया और बीजेपी शासन वाली सरकार को बिहार में स्थापित कर दिया।
अब एक बार फिर से बिहार में बड़ा उलटफेर होने की तैयारी जारी है।इस बार बिहार की राजनीति में सबसे बड़ी टक्कर बेगुसराय स्जहां युवा और अपने पढे लिखे होने का फायदा उठाने के लिए कन्हैया कुमार हर तरह का जोर लगा रहे हैं वहीं बीजेपी और कांग्रेस ने हर तरह की तैयारी कर रखी है।लेकिन दो हजार उन्नीस के चुनाव से बिहार की राजनीति की दशा और दिशा दोनों तय होने वाली है,जहां बीजेपी अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ेगी ,वहीं कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने उतरेगी। वहीं इन सबसे परे बेगूसराय के कन्हैया कुमार बिहार की राजनीति को बदलने की जो घोषणा कर रहे हैं उसका कितना असर बिहार के जनमानस पर पड़ता है यह देखना अभी बाकी है।अर्थात कहने का कुल जमा हासिल यह है कि एक समय जबभारतीय राजनीति का सबसे कद्दावर नेता लड़खड़ाया था तो उसे बिहार के ही व्यक्ति ने संभाला था, अब जब देश की राजनीति एक बार लड़खड़ाते हुए बदलाव के दौर से गुजर रही है तो उसे बिहार संभाल पायेगा कि नहीं ।
0 टिप्पणियाँ