“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

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सुभाष चंद्र बोस-2



वह समाज सेवा को सिर्फ एक आवश्यक कार्य न मानकर एक राष्ट्र निर्माण का कार्य मानते थे क्योंकि उनका मानना था कि इससे लोगों में एक दूसरे के प्रति संवेदना जागृत होती है और लोग एक दूसरे से जुड़ते हैं और इस तरह राष्ट्र मजबूत और शक्तिशाली बनता है|हैजा महामारी और अन्य खराब परिस्थितियों के समय सेवा करने वाले सुभाष हमेशा इस ताक में रहते थे कि उन्हें कब समाज सेवा का मौका मिल जाए|
मिडिल स्कूल से ही जब सुभाष के साथ दुर्व्यवहार होने लगा और भारतीय छात्रों को वैसे सुविधा नहीं दी जाती थी जैसी अंग्रेजी छात्रों को तभी से उनके मन में प्रश्न उठने लगा, “आखिर क्यों हमारे साथ ही अन्याय होता है और अक्सर उनके मन में अंग्रेजी शिक्षा-दीक्षा को लेकर संदेश रहता था कि क्यों हमें हमारे धर्म ग्रंथों और भाषा से ज्यादा बाइबल और अंग्रेजी का अध्ययन करना पड़ता है और संपूर्ण शिक्षा पद्धति हमारे अनुकूल नहीं है” और शायद यही कारण था कि स्कूल छोड़ते समय उन्हें रत्ती भर दुख नहीं हुआ|


उनकी साफ-साफ राय थी कि ऐसे स्कूल कॉलेजों में भारतीय लड़के और लड़कियों को नहीं भेजना चाहिए क्योंकि कच्ची उम्र में हुए यह समझ विकसित नहीं कर पाते कि कि संस्कृति में क्या सही है और क्या नहीं इसकी पहचान करने में सक्षम हो जाएं तभी उन्हें दूसरे संस्कृति और भाषाओं का ज्ञान देना चाहिए वह जीवन में किसी भी परिस्थिति को जीतने के लिए आत्मविश्वास को अनिवार्य शर्त मानते थे|
उनकी विश्वास की भावनाओं को  शिक्षकों के प्रति भी देख सकते हैं, जब उनके प्रिय शिक्षक बेनी माधव दास का उस स्कूल जिसमें सुभाष पढ़ते थे स्थानांतरण दूसरी जगह हो गया तो सुभाष फूट-फूट कर रोने लगे|


     
 जब उनका एडमिशन प्रतिष्ठित प्रेसिडेंसी कॉलेज में हुआ तो उस समय वह तिलक और अरविंद घोष के विचारों से काफी प्रभावित हुए छुट्टियों में हुए गांव-गांव जाकर लोगों की सेवा करते थे एक बार जब हुए गांव में गए तो लोगों ने उन्हें टैक्स कलेक्टर समझकर भगाने के लिए इकट्ठे हो गए यह देख कर सुभाष एकदम चकित रह गए की कैसे जमींदार आम किसानों पर अत्याचार करते हैं और किसान हर समय भयभीत होकर जीवन व्यतीत करता है और उसी समय एक पुत्र अपने पिता की लाश के सामने बैठ कर रो रहा था यह देखकर सुभाष एकदम   सहम गए और कसम खाई कि “मैं बदलूंगा यह सब”|
प्रारंभ से ही सुभाष का मानना था कि किसी भी राष्ट्र का जीवन खंडों में नहीं बांटा जा सकता| “यदि भारत को एक आधुनिक शब्द राष्ट्र बनना है तो भारतीयों को पूर्ण स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना ही होगा |"