ब्रिटिश सरकार को समझ में आ गया कि सुभाष चंद्र बोस उनके मार्ग में सबसे बड़े रोड़े हैं| तब अंग्रेजों ने कुछ कांग्रेसी नेताओं के साथ मिलकर बोस को किनारे करने की ठान ली|
गांधी के दांडी यात्रा पर सुभाष ने लिखा- “इस तरह का इतिहास रचा गया कि गांधीजी संकट के समय नेतृत्व के किस स्तर को छू सकते हैं”|
लेकिन 1933 आते-आते सुभाष को यूरोप में स्थानांतरित कर दिया गया लेकिन जैसे ही उनका वियना में स्वास्थ्य सुधार होने लगा तो वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय स्वतंत्रता के लिए समर्थन जुटाने में लगे 1936 आते-आते सुभाष ने विश्व स्तर पर भारत की स्वतंत्रता के लिए मदद जुटा ली और साथ ही उन्होंने हिटलर के लिए सभी निर्णयों का विरोध किया और कहा "इससे यूरोप की धरती पर अशांति सा जाएगी”
इसी दौरान में सुभाष मुसोलिनी से मिले और एक बेहद रोचक वार्ता दोनों के बीच हुई ने पूछा क्या आपको विश्वास है भारत शीघ्र स्वाधीन हो जाएगा तो नेता जी ने बड़े ही दृढ़ता से कहा हां पूर्ण विश्वास है कि भारत जल्द ही आजाद हो जाएगा”|
उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक “द इंडियन स्ट्रगल” 1935 में प्रकाशित हुई लेकिन राष्ट्रवादी भावना से ओतप्रोत तथा स्वाधीनता की मांग करने वाली इस पुस्तक को ब्रिटिश गवर्नमेंट ने बैन कर दिया लेकिन इस पुस्तक को विदेशों में खूब ख्याति प्राप्त हुई| मेनचेस्टर गॉड ने लिखा - “किसी भारतीय राजनीति के द्वारा भारतीय राजनीति पर लिखी गई अभी तक की सबसे रोचक पुस्तक है|”
संडे टाइम्स ने लिखा- “ विचारों को धार देने वाली एक मूल्यवान पुस्तक है द इंडियन स्ट्रगल”|
देश की स्वतंत्रता पर उनका विचार था कि देश स्वतंत्र होता है तो तानाशाही खत्म करना होगा और एक राष्ट्रीय योजना तैयार करनी होगी|
औद्योगिक क्षेत्रों का पुनर्गठन करना होगा,जात-पात जैसी बंदियों को खत्म करना होगा, पंचायतों का नया ढांचा तैयार करना होगा और हर तरह से प्रयास करना होगा कि एक राष्ट्रवाद का निर्माण हो, खेती का अधिक आधुनिकीकरण करना होगा”
इस तरह से सुभाष चंद्र बोस ने एक आधुनिक भारत की कल्पना की थी|
1935 में जब एक गंभीर बीमारी का इलाज सुभाष करा रहे थे तो उसमें बहुत खतरा था तो उन्होंने लिखा “मेरी जायदाद मेरे देशवासियों के हिस्से और मेरा कर्ज मेरे भाई शरद के जिम्मे”|
वे लगातार प्रयास कर रहे थे कि कांग्रेस एक पूर्ण लोकतांत्रिक संस्था बन सके जो प्रेरणा ग्रहण करें अपने संस्कृति और अपने ग्रंथों से|
वे एक राष्ट्रभाषा के पक्षधर थे जो ज्यादातर लोगों द्वारा बोली जाए और इसके लिए वे आजीवन प्रयासरत रहे और इस भाषा को समझने के लिए उन्होंने हर भारतीय भाषा मसलन मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगू, मलयालम आदि का रोमन लिपि में अनुवाद किया ताकि विभिन्न भाषा भाषी वाला यह देश एक सूत्र में जुड़ सके|
1938 में जब सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो कांग्रेस पार्टी ने 11 में से 7 प्रांतों में सरकार बना ली तब अपने अध्यक्षीय भाषण में सुभाष ने एक जबरदस्त विदेश नीति की पैरवी की| वह हर उस विचार और व्यक्ति के विरोधी थे जो एक राष्ट्र के मुद्दे का विरोध कर रहे थे| इसके लिए उनके व्यक्तिगत पहल पर असम में मुस्लिम लीग की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया|
1938 के अंत में उन्होंने जिन्ना से कई मुलाकाते-पत्राचार कर हिंदू-मुस्लिम समस्या को सुलझाने का हर संभव प्रयास किया| 1938 में ही उन्होंने मुंबई में योजना समिति का उद्घाटन कर जवाहरलाल नेहरू को उसका अध्यक्ष बनाया|
वह ब्रिटिश सरकार से कोई भी समझौता करने को तैयार नहीं थे| वे देश में एक स्थाई शोध परिषद का गठन भी करना चाहते थे जिससे देश में शोध और वैज्ञानिक कार्य को बढ़ावा मिले ताकि देश तीव्र गति से उन्नति कर सकें|
अपने लोभहीन राष्ट्रवाद के कारण सुभाष कई कांग्रेसियों की आंखों में खटकने लगे| 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन के बाद सुभाष और कांग्रेस में दूरी बढ़ती गई| बोस बाबू ने अपना रास्ता अलग कर लिया और फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की| 1939 में त्रिपुरी कार्यकारिणी समिति चुनाव में सुभाष चंद्र बोस और कुछ राजनेताओं के बहकावे में आकर गांधी और सुभाष आमने-सामने थे, तो सुभाष ने राष्ट्र अध्यक्ष चुनाव के लिए कहा- कि कांग्रेस का अध्यक्ष उस एक संवैधानिक प्रमुख की तरह है,जो देश की एकता और अखंडता को चिन्हित करता है अतः उसका चुनाव किसी विचारधारा या व्यक्ति के प्रभाव से रहित होना चाहिए|
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