“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

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नोटबंदी और जीएसटी से भाजपा को नही हुआ नुकसान


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17 वें लोकसभा चुनाव की घोषणा होते ही तमाम राजनीति के जानकारों और विशेषज्ञों ने इस लोकसभा चुनाव में मोदी फैक्टर को एक सिरे से नकारते हुए भविष्यवाणी की थी कि इस लोकसभा चुनाव में 2017-18 में मोदी सरकार द्वारा लागू किये गए नोटबंदी और जीएसटी, भाजपा के लिए बड़ा घातक साबित होने वाला है,साथ ही ये बहुत मुश्किल है कि फिर से भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकार बने। जिस इस तरह से इस विशाल लोकतंत्र में सात चरणों में सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न हुआ वो अपने आप में अद्भुत और अकल्पनीय था। हालांकि पश्चिम बंगाल में जिस तरह से लोकतंत्र की हत्या का प्रयास हुआ, वह स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रणाली के भविष्य के लिए ज़रूर चिन्ता का विषय है।  

लेकिन इन सब से हटकर गौर करने वाली बात भाजपा को मिले प्रचण्ड बहुमत की है।
जिस तरह से पहले नोटबंदी और फिर जीएसटी लागू किया गया,उससे सभी राजनीति के विद्वानों और विपक्षी पार्टियों ने भाजपा के लिए इस तरह की सफलता की  उम्मीद तो कभी नहीं की थी।
मसलन कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने हर सम्भव प्रयास किया कि  नोटबंदी व जीएसटी को मुद्दा बनाकर वो जनता के बीच जाएंगे और अपने पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास करेंगे। राहुल गांधी और विपक्ष के हर बड़े नेता चुनाव प्रचार के दौरान अपनी रैलियों व भाषणों में भी नोटबंदी व जीएसटी के बहाने मोदी व भाजपा को हर तरह से घेरने का प्रयास करते नजर भी आये। लेकिन भारतीय राजनीति अब एक दम बदल चुकी है संचार-प्रौद्यिकी के विकास का स्तर आज काफी ऊँचा हो चला है और इस संचार व्यवस्था से हर भारतीय जुड़ा हुआ है;जिसका परिणाम ये रहा कि जनता ने नोटबंदी और जीएसटी के नकरात्मक पहलुओं के साथ उसके सकरात्मक पक्षों को भी समझा। जनता ने महसूस किया कि अर्थव्यवस्था में इन सुधारों से तत्कालीन हानि जरूर है लेकिन आने वाले समय में ये समाज और देश विकास में तेज़ी से सहायक होने वाला है।
  
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नोटबंदी व जीएसटी को लेकर मोदी और भाजपा के लिए जारी की गयी सभी रिपोर्ट और भविष्यवाणियाँ गलत साबित हुईं। इस बार भाजपा ने जहां अकेले दम पर रिकॉर्ड 303 सीटों पर विजय प्राप्त कर जनता से जुड़ने और अपनी बातें पहुंचाने में सफल साबित हुयी है; वहीं विपक्ष को अब ये समझाना होगा कि गुमराह और सत्ता पाने के लालच में अब आप अपनी रोटी नहीं सेक सकते। मसलन राहुल गांधी की अमेठी में हार ने ये साबित कर दिया है कि जब तक आप वास्तविक मुद्दों को नहीं उठाओगे और जनता का बीच जाकर काम नहीं करोगे तब तक आपका सत्ता पाने का ख्वाब,ख्वाब ही बनकर रह जाएगा।
   मोदी व भाजपा ने जनता से जुड़ने और जनता तक अपनी बात पहुंचाने में सफलता पायी तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण भाजपा का मजबूत संगठन था, जिसमें "मेरा बूथ सबसे मजबूत" जैसे इनोवेटिव आईडिया ने भाजपा को नोटबंदी और जीएसटी के कारण होने वाले नुकसानों से बचा लिया।  भाजपा कार्यकर्ताओं और नरेंद्र मोदी के मुखर भाषणों ने जनता तक मोदी सरकार द्वारा जनोद्धार के लिए शुरू किये गए कार्यक्रमों जैसे-उज्ज्वला,आयुष्मान भारत आदि के माध्यम से जनता को आकर्षित करने में अभूतपूर्व सफलता पायी। जिसका परिणाम रहा कि 1980 से कांग्रेस को जीत दिलाने वाली सीट "अमेठी " भी गँवाना पड़ा जो कांग्रेस के लिए गहरी चिंता का विषय है। साथ ही विपक्षी पार्टियों ने जमीनी मुद्दों से हटकर मोदी को रोकने के नाम पर चुनाव लड़ा;जिससे जनता ने उनकी सत्ता के लिए महत्वाकांक्षा को भांप लिया और एक सिरे से नकारकर; प्रचंड बहुमत से मोदी और भाजपा को सत्ता पर फिर से कायम किया।

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