“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

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उत्तरप्रदेश में बदलता चुनावी समीकरण-

माना जाता है भारतीय राजनीति में चुनाव जीतने का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है। उत्तर प्रदेश की राजनीति तय करती है कि देश में आने वाली सरकार किस पक्ष की होगी या आने वाला प्रधानमंत्री कौन होगा। अतः सभी पार्टियां इस प्रयास में रहती हैं कि उत्तर प्रदेश में अपनी जीत का बिगुल फूंक कर अपनी सरकार बना सकें। मसलन उत्तर प्रदेश से ही तय होता है कि आने वाली राजनीति की दशा और दिशा देश में क्या होगी?

  2014 में जब आम चुनाव हुए तो उत्तर प्रदेश की जनता ने भाजपा को भारी मतों से विजयी बनाकर कई सारे पूर्वाग्रहों को तोड़ दिया। मसलन उत्तर प्रदेश की राजनीति के अनिवार्य माने जाने वाले घटक जाति,धर्म आदि टूटते देखे गए।
 2014 के इलेक्शन में जहां कांग्रेस की हालत काफी खराब रही वहीं जाति और धर्म के नाम पर वर्षों से अपनी राजनीति की रोटी सेंकने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया था। मसलन उत्तर प्रदेश की जनता ने बहुजन समाजवादी पार्टी के राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पहचानते हुए जहां उन्हें एक भी सीट नहीं दी, तो वहीं समाजवादी पार्टी की भी स्थिति सोचनीय हो गयी।

2017  में जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों की घोषणा हुई तो किसी ने भी कल्पना नहीं किया था कि भाजपा को इतना भारी बहुमत मिलेगा। आप इसे मोदी मैजिक मानिए या बदलते भारत की तस्वीर मानिए उत्तर प्रदेश के लोगों ने जाति धर्म से ऊपर उठकर राज्य और देश कल्याण के लिए वोट करने की ठानी है,वहीं एक सिरे से धर्म और जाति के नाम पर बांटने वाली पार्टियों को उत्तर प्रदेश के लोगों ने नकारना शुरू कर दिया है। मसलन समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के शासन काल में जहां कानून व्यवस्था और पुलिस व्यवस्था पर आए दिन सवाल उठते थे वहीं गुंडागर्दी और वसूली अपने चरम पर थी।  ऊपर से नीचे लेकर सभी अधिकारी और नेता भ्रष्टाचार में लिप्त थे, सभी संसाधनों से परिपूर्ण और इतना क्षमतावान होने के बावजूद उत्तर प्रदेश की गिनती भी पिछड़े राज्यों में की जाती थी। तो इन सब का कारण कोई और नहीं वर्षों से उत्तर प्रदेश की राजनीति का स्तर गिराने और उसे धर्म और जाति में बांटने वाली पार्टियां ही जिम्मेदार हैं। जिनके नेताओं ने उत्तर प्रदेश की जनता को मूर्ख बनाकर और एक दूसरे के विरुद्ध बांटकर अपनी तो करोड़ों करोड़ की संपत्ति बनाकर अपना और अपने परिवार का विकास तो किया लेकिन राज्य की जनता को लूट लूट कर बर्बाद कर दिया।

  2019 में आम चुनाव की घोषणा के बाद से अटकलें एवं उत्तर प्रदेश में राजनीतिक माहौल बदलने के प्रयास तेज होने लगे। मसलन सिद्धांतों और सपोर्टर्स की आकांक्षाओं को ताक पर रखकर कभी एक दूसरे की घोर विरोधी रही पार्टियां समाजवादी पार्टी व बहुजन समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेता  सत्ता की लालच और अपना अस्तित्व बचाने के लिए गठबंधन करते हैं,तो वहीं बीमारू राजनीति और अस्वस्थ लोकतंत्र का परिचय देते हुए कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के विरुद्ध अपने एक भी कैंडिडेट नहीं उतारते। इनकी तमाम घोषणाएं और महत्वाकांक्षाएं केवल सत्ता का सुख भोगने तक ही सीमित थीं।उन्होंने न तो कभी जनता के आकांक्षाओं को समझने का प्रयास ही किया और न ही कभी प्रदेश को उन्नति के मार्ग पर ले जाने का प्रयास किया। मसलन विचारधाराओं को ताक पर रख कर जिस तरह से समाजवादी और बहुजन समाजवादी पार्टी ने गठबंधन किया वो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए कभी सही नहीं माना जा सकता।

Naendra modi, rahul gandhi, akhilesh yadav, mayawati  




      2019 आम चुनाव से पहले अटकलें तेज हो गई थी कि इस महागठबंधन को भाजपा कभी नहीं भेद पाएगी। साथही तथाकथित इस हुए महागठबंधन को उत्तर प्रदेश की राजनीति में अभूतपूर्व और अकल्पनीय बताया जा रहा था। मसलन चर्चा तेज हो गई थी कि उत्तर प्रदेश की राजनीति का ध्रुवीकरण होना फिर से तय है और इस बार भाजपा का उत्तर प्रदेश जीत का परचम लहराना बहुत कठिन है। मसलन समाजवादी और बहुजन समाजवादी पार्टी के नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान भी जनता को बांटने और धर्म के नाम पर अपनी राजनीति के भविष्य को तय करने का प्रयास किया। जिसे मायावती के उस बयान से समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि "मुस्लिम एक होकर महागठबंधन को वोट दें।"
  लेकिन भारत में जिस तरह से मोदी फैक्टर और भाजपा की दूरदर्शिता ने राजनीति को बदल दिया है वह अद्भुत और अकल्पनीय ही माना जाएगा। जहां उत्तर प्रदेश की जनता ने इस जातिगत और धर्मगत राजनीति को एक सिरे से नकारा वहीं भाजपा को फिर से एक बड़ी जीत दिलाने में भूमिका निभायी। मसलन जहां इस बार भाजपा का उत्तर प्रदेश में वोट प्रतिशत बढ़ा तो वहीं ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाली पार्टियों के एक अलार्म है जिससे उन्हें अब यह समझना होगा कि जाति और धर्म के नाम पर बांटने वाली राजनीति आप ज्यादा समय तक नहीं कर सकते। जनता आपके पूर्वजों और वंश के नाम पर आपको न तो वोट देने वाली है न ही चुनाव जिताने वाली है शायद यही कारण रहा कि राहुल गांधी को अमेठी की सीट गंवानी पडी। तो वही सपा व बसपा को भी अब यह समझना होगा कि यदि आप विकास के मुद्दों से भटका कर जनता को ज्यादा समय तक धर्म व जाति के नाम पर वोट नहीं ले सकते।मसलन उत्तर प्रदेश में पूरे विपक्ष कांग्रेस व महागठबंधन ने मोदी को रोकने के नाम पर चुनाव लड़ा,लोगों को जाति व धर्म के नाम पर बांटने की कोशिश कर वोट लेने का प्रयास किया,जिसे जनता ने एक सिरे से नकार दिया है।

  साथ ही इस 2019 के आम चुनाव के परिणामों ने तय कर दिया है की भारतीय राजनीति की दशा दिशा और भविष्य क्या होने वाली है। नरेंद्र मोदी और भाजपा ने भारतीय राजनीति में एक बहुत बड़ी रेखा खींची है,जिसने उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में जाति और धर्म के सभी पूर्वाग्रहों को तोड़ दिया। तो वही महत्वाकांक्षी राजनीति पार्टियों और नेताओं को चेतावनी दी है कि यदि आप चुनाव धर्म और जाति के नाम पर बांटने के लिए लड़ोगे और आपकी राजनीति लोगों को बांटने पर ही आधारित रहेगी तो आपकाकोई भी भविष्य नहीं है।यह भारतीय राजनीति के नजरिए से अच्छा ही माना जाएगा कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य ने जाति और धर्म के सभी पूर्व पूर्वा ग्रहों को एक सिरे से नकार दिया। ये बदलते भारत की तस्वीर है जिसकी न्यू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में रखी थी।







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