“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

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"आधुनिकता की दौड़ में टूटता परिवार"

 इस बदलते परिवेश और आधुनिकता की बढ़ती चकाचौंध में हम सभी भूलते जा रहे हैं कि परिवार का महत्व क्या होता है ?

हम में से ज्यादातर लोगों को याद होगा जब गर्मियों में या तो हम सब अपने गांव घर में इकट्ठा होते थे;या तो एक ही घर में4-5पुरुष,4-5 महिलाएं और 8-10 बच्चे होते थे।परिवार में एक मुखिया होता था जो परिवार में अनुशासन और परिवार को एक सूत्र में बांधकर रखने वाला एक स्रोत की तरह था।हम इतने आत्ममुग्ध और स्वयं के प्रति इतने असंवेदनशील होते जा रहे हैं कि हमने भारतीय समाज के सबसे अनिवार्य घटक व भारतीय समाज की आत्मा "परिवार" को अपनी सामाजिक व्यवस्था से हटाने का प्रयास करते जा रहे हैं।
एक समय था जब परिवार में कितने ही लोग होते थे, लोग खुश थे और एक दूसरे से जुड़े हुए थे,सब एक- दूसरे के सुख-दुःख के साथी थे।
image of joint family
JOINT FAMILY  (SOURCE- GOOGLE.COM)

  परिवार को इस तरह एक सूत्र में बात कर रखने वाली डोर थी प्रेम और विश्वास की।परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे पर अटूट विश्वास करते थे, शायद इसी वजह से सब साथ साथ रह पाते थे। फिर हम सब आधुनिकता की दौड़ के लिए निकले तो हमने पश्चिमी सभ्यताओं की नकल करते हुए "न्यूक्लियर फैमिली" को इसलिए अपनाना शुरू किया ताकि हम आत्ममुग्ध होकर केवल खुद पर ध्यान दें और स्वयं के लिए ही साधन और संसाधन जुटाते रहें। और हमारे इस "मैं" के भाव ने जहां एक ओर हमें हमारे लोगों से अलग किया, वहीं हमारी अनमोल विरासत हमारे पारिवारिक संबंधों व व्यवस्थाओं को धीरे-धीरे करके तोडना प्रारंभ कर दिया।हमारे अलग रहने के प्रयास ने हमारे अंदर अवसादों को जन्म दिया और हम अब सभी को शक और अविश्वास के तराजू में तौलने लगे।
  अब आप स्वयं विचार करिये; क्या हम सब साथ-साथ हैं? क्या हम दूसरों पर विश्वास करने का प्रयास करते हैं?
   दूसरों को छोड़िए, आज हमें खुद पर विश्वास नहीं रह गया है।हर एक को आज अपनी-अपनी पडी है, ज्यादा से ज्यादा संसाधन हर व्यक्ति अपने लिए जुटाने का प्रयास कर रहा है।भाई -भाई पर विश्वास नहीं कर रहा है। पिता-पुत्र के बीच मनमुटाव चल रहा है।सास-बहू में आए दिन अनबन होती रहती है।ये सब कम होते आपसी विश्वास के परिणामस्वरूप हो रहा है।
 
    पिता बड़ी मेहनत और उम्मीद से घर की आधारशिला रखता है, लेकिन उस आधारशिला में कहीं न कहीं विश्वास-प्रेम के घटक छूट रहे हैं;शायद इसी कारण परिवार में शंका और आपसी मनमुटाव बढ़ते जा रहे हैं।अब उस घर के नींव की ईंटें इतनी कमजोर पड़ती जा रही हैं कि जितना मर्जी आप सीमेंट लगाइए वो जुड़ने वाली नहीं हैं।

  माता पिता अपनी औलाद को अच्छे से अच्छा संस्कार देने का प्रयास करते हैं।उसके लिए अच्छे से अच्छी गुणी-संस्कारी लडकी की तलाश कर उसका विवाह करते हैं।लेकिन इस बदलते परिवेश में जहां बहू की परिवार से अनबन रहती है, वहीं खुद का बेटा जिसमे हमारे संस्कार-गुण हैं, जो हमारा ही अंश है, हम उस पर भी विश्वास नहीं करते। हर पिता अपनी वसीयत लिखता है "मेरे मरणोउपरांत मेरी पूरी जायदाद मेरे बेटे या बेटी को दे दिया जाए।" लेकिन जिंदा रहते हुए हम अपने अंश अपने बेटे या बेटी पर इतना ही विश्वास क्यों नहीं दिखाते?


image of nuclear family now these days
NUCLEAR FAMILY BUSY LIFE (SOURCE- GOOGLE.COM)

      विश्वास इस संसार का सबसे अच्छा शब्द है; जो इस जगत में जीवन को सतत् रूप से चलाने की प्रेरणा देता है।ये विश्वास ही है जो हमें बार-बार ये साहस देता है कि "आज कितना ही खराब क्यों न हो, आने वाला कल निश्चित ही बेहतर होगा।" विश्वास के कारण ही बड़ी से बड़ी समस्या एक समय के बाद हल हो जाती है।विश्वास के दम पर ही चींटी बड़े से बड़ी दीवार चढ़ जाती है।और ये सामाजिक व्यवस्था में विश्वास ही वह साधन है जिसके दम पर पिता अपनी पुत्री को एक अनजान परिवार में सौंप देता है।विश्वास के कारण ही हमें पत्थरों में भी भगवान नजर आते हैं।
   परन्तु , एक पिता का अपने पुत्र पर और एक सदस्य का अपने परिवार पर विश्वास न होना, हमारे टूटते- बिखरते संबंधों का कारण और हमारी चरमराती पारिवारिक व्यवस्था की वजह है।
   क्या हो गया है हमको? क्यों ऐसा कर रहे हैं हम? दिखावे के लिए रिश्तों को निभाना कुछ अहमियत नहीं रखता ,जब तक आप एक-दूसरे पर विश्वास न करें और एक दूसरे के प्रति प्रेम न रखें।
  हम हर खुशी पाना चाहते हैं अधिक से अधिक संसाधन जुटाना चाहते हैं ,लेकिन इसका क्या फायदा जब हमारे लोग ही हमारी खुशियों- सफलताओं के जश्न में शामिल न हों। हम अनजान लोगों के पीछे भागने और उन्हें खुश करने के अथक प्रयास करते हैं, लेकिन कुछ भी फायदा नहीं होने वाला हमारी मुसीबतों के समय हमारे साथ उनमें से कोई खडा नहीं होने वाला।इस अवसादग्रस्तता से बाहर निकलिए संभाल लीजिये अपने परिवार को टूटने-बिखरने से, इस "अविश्वास के दीमक" को खत्म कर दीजिये अपने अंदर और हमारे समाज से ,ताकि एक बेहतरीन कल और भविष्य हमारी आने वाली पीढियों को मिले, जहां केवल "प्रेम और आपसी सौहार्द हो। "
  रहीम दास का ये दोहा आज भी टूटते रिश्तों और पारिवारिक व्यवस्था पर प्रासंगिक है-

"रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाये, टूटे पे फिर ना जुडे,जुडे गांठ पड़ी जाये।"


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