“प्रत्येक विद्रोही देशभक्त भले ही ना हो, लेकिन हर देशभक्त के अंदर कहीं ना कहीं विद्रोह की भावना रहती हैं|”
विश्व का इतिहास हमें कम से कम तो यही बताता है ,चाहे वाशिंगटन की बात हो, ,चाहे क्रॉमवेल की बात हो ,चाहे लेनिन की बात हो या हिटलर, इन सबके अंदर कहीं ना कहीं अपने राष्ट्र के लिए विदेशी ताकतों के प्रति विद्रोह की भावना थी।
इतिहास का वह शख्स जिसके बारे में टुकड़ों -टुकड़ों में बातें की जाती है, उनके संपूर्ण योगदान पर चर्चा कम ही होती है। जिनके जय हिंद के नारे की गूंज आज भी बच्चे-बच्चे की जुबान पर है। जिन्होंने आजाद हिंद फौज की कमान संभाली तो जन गण मन का हिंदी रूपांतरण कौमी तराना के रूप में तैयार किया। उन्होंने भारत को एक राष्ट्र के रूप में न केवल खड़ा करने का प्रयास किया, बल्कि देश के लिए राष्ट्रीय योजना समिति के जरिए विकास का विचार भी दिया। जो एक क्रांतिकारी से ज्यादा एक कुशल राजनेता समाज सेवक विचारक और लेखक थे। सुभाष चंद्र बोस के जीवन व राष्ट्र और राष्ट्रवाद पर उनके विचार के योगदान की-
यह बालक बचपन से ही स्कूल जाने के लिए लालायित होता है अपने बड़े भाई बहनों को देखकर उसका भी मन करता है कि कब वह स्कूल जाएगा और आखिरकार जब वह 5 वर्ष का होता है तो वह स्कूल जाने की तैयारी करता है और जिस घोड़ागाड़ी से उसे विद्यालय जाना होता है अत्यधिक उत्साह के कारण वह दौड़ कर उस घोड़ा गाड़ी की तरफ भागता है और उसी पर पांव फिसलने के कारण गिरने से उसका मुंह टूट जाता है जब इस उम्र में चोट लगने के कारण सब बच्चे जोर जोर से रोने लगते हैं वह बालक अपने स्कूल ना जा पाने के कारण मायूस हो जाता है। स्कूल में पहले दिन से ही उसे स्कूल का वातावरण पसंद नहीं आता क्योंकि वह मिशनरी स्कूल था वहां न तो हिंदी पढ़ाई जाती थी और ना ही भारतीय संस्कृति के बारे में बताया जाता था एक तरह से कह सकते हैं “पढ़े-लिखे गधे तैयार किए जाते थे जो अंग्रेजी संस्कृति उनके इतिहास और भाषा को जाने। ”
फिर उनका एडमिशन कॉलेजिएट स्कूल में कराया गया उसी दौरान उन पर प्रभाव पड़ा स्वामी विवेकानंद का और उनकी कही गई एक बात हमेशा के लिए सुभाष के मन में घर कर गई “कौन है जो युगों से उठती हुई भारत की पुकार सुनेगा, कौन है जो भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से आजाद करेगा, क्या संपूर्ण भारत में ऐसा कोई युवा है?” तब सुभाष ने तय किया कि उनका अंतिम लक्ष्य होगा आजादी।
विवेकानंद के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने स्कूल के दौरान कमजोरो और गरीबों की मदद करना शुरू कर दी थी।
बचपन से ही अति भावुक और अंतर्मुखी रहने वाले सुभाष का मानना था कि “हमेशा नई राह चुनने वाले व्यक्ति के सामने कई मुश्किलें आती हैं, कई बार तो वे इतनी बड़ी होती है कि हमें पागल कर सकती हैं अतः ऐसे में आत्मविश्वास बनाकर परिस्थितियों से लड़ने के लिए कमर कस लेनी चाहिए। ” वे स्त्री पुरुष की समानता पर जोर देते थे इसलिए उन्होंने कहा “कोई स्त्री या पुरुष अपने जीवन का निर्माण स्वयं करता है। ”