“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

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होली तो बीत गई, लेकिन ये " कैसी होरी खिलाई" भारतेन्दु हरिश्चंद्र की ये कविता में आज भी आग लगा दे

होली तो बीत गई, लेकिन ये " कैसी होरी खिलाई" भारतेन्दु हरिश्चंद्र की इस कविता में आज भी इतना जोश है कि आग लगा दे, दरअसल "भारतेन्दु " जी ऐसी ही कविता लिखा करते थे । आज के समय में ये कविता युवकों पर ऐसा असर डाले कि वो अपनी प्रेमिका के लिए पागल हो जाएं। चलिए देखते हैं भारतेन्दु जी की कविता के कुछ अंश।


कैसी होरी खिलाई।

आग तन-मन में लगाई॥

क्रेडिट - यूट्यूब


पानी की बूँदी से पिंड प्रकट कियो सुंदर रूप बनाई।

पेट अधम के कारन मोहन घर-घर नाच नचाई॥

तबौ नहिं हबस बुझाई।

भूँजी भाँग नहीं घर भीतर, का पहिनी का खाई।

टिकस पिया मोरी लाज का रखल्यो, ऐसे बनो न कसाई॥

तुम्हें कैसर दोहाई।

कर जोरत हौं बिनती करत हूँ छाँड़ो टिकस कन्हाई।

आन लगी ऐसे फाग के ऊपर भूखन जान गँवाई॥

तुन्हें कछु लाज न आई।

- भारतेन्दु हरिश्चंद्र ।

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