“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

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कांग्रेस के प्यारे कम्युनिस्ट

                   वायनाड केरल के संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे राहुल गांधी ने नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद वार्ता करते हुए कहा कि सत्तारूढ  CPI- M के खिलाफ उन्होंने एक भी शब्द न बोलने की कसम खाई है।साथ ही उन्होंने कहा "CPI- M के मेरे भाई और बहनों के विरुद्ध मैं एक शब्द नहीं बोलूंगा।"

कांग्रेस की इस नीति से थोडी असहजता तो होती ही है;साथ ही आश्चर्य होता है कि इस चुनाव में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही देश की सबसे पुरानी पार्टी को किस तरहअपने पुराने प्रतिद्वंदियों को अपना मित्र और भाई- बहन बताना पड़ रहा है।जिससे एक बात तो साफ है कि कांग्रेस और राहुल का मुख्य उद्देश्य चुनाव जीतना ही है। इसके लिए वो अपने पुराने प्रतिद्वंदियों और शत्रुओं से भी हाथ  मिलाने और उनके खिलाफ न बोलने की कसमें भी खा रहे हैं। आपको बता दें केरल में कांग्रेस  कम्युनिस्टों और अन्य वाम दलों को प्रारंभ से ही शक की निगाह से देखती आई है।चाहे वह नेहरू का दौर हो या इंदिरा गांधी का उन्होंने वामपंथियों को हमेशा नापसंद ही किया है।                


     नेहरू के दौर की बात करें तो कम्युनिस्टों ने शुरू से ही दावा किया था कि आजादी झूठी है और इस सरकार के विरुद्ध एक खूनी संघर्ष होना चाहिए।60  के उस दशक में वामपंथी कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुके थे।और कांग्रेस ने उनसे निपटने के लिए हर तरह के प्रयास किये थे,और उन्हीं में से एक था उस समय के केरल के कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यमंत्री इ• एम •एस नम्बूदरीपाद की सरकार को बर्खास्त करने का।बात करें इंदिरा गांधी की तो वे प्रारंभ से ही कम्युनिस्टों को थोड़ा भी बर्दाश्त नहीं करती थीं।प्रारंभ से ही वे कम्युनिस्टों को देश के लिए खतरा मानती थी।
 

    लेकिन जिस तरह से राजनीतिक माहौल 2014 और उसके बाद से बदला है उससे एक बात तो साफ हो गई है कि कांग्रेस अब न्यूट्रल पार्टी नहीं रह गई ,कांग्रेस के पास अब दो ही रास्ते थे या तो वह दक्षिणपंथी पार्टियों की ओर जाए और उनसे गठबंधन बनाए या वामपंथियों की आलोचना से बचे और उनको अपने विश्वास में लेने का प्रयास करें।इसके लिए कांग्रेस ने दो नीतियां अपनाई उत्तर के लिए अलग और दक्षिण के लिए अलग।उत्तर की राजनीति के लिए राहुल गांधी ने जनेऊ पहनने से लेकर मंदिरों के चक्कर लगाने जैसे हथकंडों को अपनाया ताकि दक्षिणवादी विचारधारा पर विश्वास रखने वाली जनता को वो अपने पक्ष में कर सकें।तो दक्षिण की राजनीति में बदलाव के लिए व कांग्रेस को स्थापित करने के लिए उन्होंने वामपंथी विचारधाराओं को हवा देना शुरू किया और उनके खिलाफ न बोलने की कसमें खाई।उत्तर और दक्षिण की अलग-अलग सीटों से दो जगहों से चुनाव लड़ने का एक मतलब तो साफ है कि राहुल फिर से किसी तरह जनता को कांग्रेस के पक्ष में करना चाहते हैं तो साथ ही अपनी योग्यता को भी साबित करना चाहते हैं।कांग्रेस की यह नई नीति  लोकसभा चुनाव में उसे कितना सफल बनाती है यह तो समय ही बताएगा।लेकिन एक बात यह तो साफ है कि बीजेपी और नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए कांग्रेस जो कुछ भी हो सकता है वह सब करने के लिए तैयार हैं।लेकिन राहुल गांधी की इस नीति से लोकतंत्र के लिए एक सबसे बड़ा खतरा यह हो गया है कि आलोचना और आरोप- प्रत्यारोप की नीति जो लोकतंत्र की सबसे बड़ी विशेषता है उन सबसे हटकर चुनाव जीतने के लिए राहुल गांधी कुछ भी आजमाने को तैयार हैं;जो कि देश में लोकतांत्रिक प्रणाली के विकास के नजरिये से कभी भी सही नहीं माना जा सकता ।