Narendra modi with adwani |
"इतना भी गुमान न कर अपनी जीत पर ऐ बेखबर!
शहर में तेरी जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हैं।"
भाजपा की ओर से जब चुनावलिस्ट जारी हुई तो उसमें सबसे ज्यादा हैरान न करने वाला नाम गांधीनगर सीट के उम्मीदवार का था,अर्थात अमित शाह जो लालकृष्ण आडवाणी की जगह इस बार गांधीनगर की लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।हालांकि आडवाणी ने पहले ही यह संकेत दिया था कि वह शायद ही 2019 का चुनाव लड़े ,लेकिन अपनी सीट से वो अपनी बेटी को लड़ता देखना चाहते थे।
लाल कृष्ण आडवाणी भारतीय राजनीति के वो लौह पुरुष हैं जिन्होंने एक पार्टी (भाजपा) को पहले राजनीति के केंद्र और फिर 2 सीटों पर से उठाकर सत्ता के केंद्र पर पहुंचाया।मसलन भैरों सिंह शेखावत और अटल बिहारी वाजपेयी उस समय जनसंघ की राजनीति का पब्लिक चेहरा हुआ करते थे। लेकिन अभी भी कांग्रेस से अलग विचारधारा रखने वाली ये पार्टी व्यवस्थित रूप से संपूर्ण देश में अपने को स्थापित नहीं कर पाई थी,तो साथ ही अभी तक की भारतीय राजनीति व संसद भवन में यह पार्टी नाम मात्र की भूमिका अदा कर रही थी।और उस समय के हालात देखकर यह कभी नहीं लगता था कि यह पार्टी कभी अपने दम पर सत्ता पर स्थापित हो पायेगी।लेकिन पार्टी में एकआम कार्यकर्ता के रूप में शामिल व्यक्ति लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी को उठाना शुरू किया।पार्टी को संपूर्ण देश में पहचान दिलाने व स्थापित करने के लिए उन्होंने हिंदुत्व, अपना धर्म,अपनी संस्कृति जैसे विचारों को धार देना शुरू किया।1989 में की गई रथ यात्रा ने भाजपा का कायाकल्प ही कर डाला।अब भाजपा एक राष्ट्रीय पार्टी बन चुकी थी।
rath yatra by L.K. adwani |
एक हार्ड लाइनर बन चुके आडवाणी ने प्रधानमंत्री पद के लिए वाजपेयी का नाम आगे बढ़ायातो साथ ही भविष्य में खुद को प्रधानमंत्री के रूप में देखने का सपना भी पाला।लेकिन 2004 और फिर 2009 मैं आडवाणी को गहरा आघात पहुंचा जब पार्टी बहुमत नहीं ला पाई।साथ ही अब पार्टी में कुछ कार्यकर्ताओं को लगने लगा कि आडवाणीकी रणनीतिक नीतियां अब नाकामयाब हो रही हैं।2012 तक मोदी आडवाणी के लेफ्टिनेंट रहे थे लेकिन पार्टी वर्कर्स औरआडवाणी की बढ़ती उम्र को देखकर मोदी एंड कंपनी ने नया रास्ता चुनने का प्रयास प्रारंभ किया।2013 तक परिस्थितियां बदल चुकी थी अब पार्टी में प्रधानमंत्रीचेहरे के लिए आडवाणी के सामने सबसे बड़ी चुनौती खुद नरेंद्र मोदी बनने वाले थे।2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा और काफी बड़ी जीत हासिल की।लेकिनआडवाणी फिर से एक गलती कर गए और वो राजा (नरेंद्र मोदी)की घोड़ी के सामने आकर खड़े हो गए। जिसकी झुंझलाहट राष्ट्रपति चुनाव में भी दिखी और एक बार फिर आडवाणी राजनीतिक रूप से मोदी एंड कंपनी के सामने परास्त हो गए।अर्थातआडवाणी की स्थिति कुछ ऐसी हो गई थी-
"न खुदा मिला न मिसाले सनम।
न इधर के रहे न उधर के।"
left- Lalkrishna adwani, middle- Atal bihari bajpai, right- murli manohar joshi BJP ki tikdi |
Image soure- google.com
हालाँकि 20 17के राष्ट्रपति चुनाव से ही यह साबित हो गया था किअब भाजपा में आडवाणी के लिए कोई जगह नहीं है,जिसकी घोषणा 2019 लोकसभा चुनाव के समय की गई।
अभी भी पॉलिटिकलीरूप से सबसे शार्प माइंड के माने जाने वाले आडवाणीअपनी इस स्थिति के लिए कहीं न कहीं खुद जिम्मेदार है। 2002 में मोदी को बचाने के बाद आडवाणी यह सोच रहे थे कि उन्होंने अपनी जेब में एक तुरुप का इक्का(मोदी) रखा हैजिसका इस्तेमाल वे अपने लिए कभी भी कर सकते हैं;लेकिन वो ये समझने में नाकामयाब रहे कि 2014 तक परिस्थितियां बदल चुकी थी और पार्टी मोदी के इर्द-गिर्द गोलबंद हो चुकी थी।और दूसरी गलती उनके हार्डलाइनर से अपनी सॉफ्ट इमेज बनाने की थी;जिसके लिए उन्होंने पाकिस्तान में जिन्ना कीतारीफ की थीऔर इसी को लेकर उनके विरोधी हमेशा उन पर हावी रहे और उनका यह मास्टरस्टोक बाउंड्री पर कैच पकड़ लिया गया। सही ही कहा गया है-
"ये संगदिलों की दुनिया है, संभल कर चलना 'गालीब'।
यहां पलकों पर बिठाते हैं नजरों से गिराने के लिए....."