“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

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यों मुझको ख़ुद पे बहुत ऐतबार है, लेकिन ये बर्फ आंच के आगे पिघल न जाए कहीं

अपने शब्दों से भी कोई क्रांतिकारी कहला सकता है ! ये बात दुष्यंत कुमार जी के ऊपर बिलकुल फिट बैठती है, आइये उनकी ऐसी ही एक क्रांतिकारी कविता से मिलते हैं जिनको पढ़ के आपके मन में जोश भर  जायेगा और रोंगटे खड़े हो जायेंगे। 

फोटो - narendragangwar.blogspot.com 

नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं
जरा-सी बात है मुँह से निकल न जाए कहीं

वो देखते है तो लगता है नींव हिलती है
मेरे बयान को बंदिश निगल न जाए कहीं

यों मुझको ख़ुद पे बहुत ऐतबार है लेकिन
ये बर्फ आंच के आगे पिघल न जाए कहीं

चले हवा तो किवाड़ों को बंद कर लेना
ये गरम राख़ शरारों में ढल न जाए कहीं

तमाम रात तेरे मैकदे में मय पी है
तमाम उम्र नशे में निकल न जाए कहीं

कभी मचान पे चढ़ने की आरज़ू उभरी
कभी ये डर कि ये सीढ़ी फिसल न जाए कहीं

ये लोग होमो-हवन में यकीन रखते है
चलो यहां से चलें, हाथ जल न जाए कहीं। 

- महाकवि दुष्यंत कुमार 

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