“यदि आप वही करते हैं, जो आप हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा, जो हमेशा से मिलता आया है!!” — टोनी रॉबिंस

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वो शख्स जिसने सही नज़रों से दुनिया को देखा

"चे ग्वेरा की तस्वीर को पाकिस्तान में ट्रकों, लॉरियों के पीछे देखा जा सकता है, जापान में बच्चों के, युवाओं के स्नो बोर्ड पर देखा जा सकता है।  चे ने क्यूबा को सोवियत संघ के करीब ला खड़ा किया। क्यूबा उस रास्ते पर कई दशक से चल रहा है। चे ने ही ताकतवर अमरीका के ख़िलाफ़ एक-दो नहीं कई विएतनाम खड़ा करने का दम भरा था।


चे एक प्रतीक हैं व्यवस्था के ख़िलाफ़ युवाओं के ग़ुस्से का, उसके आदर्शों की लड़ाई का "

चे ग्वेरा की तस्वी

 क्यूबा एक लैटिन अमेरिकी देश है,जो तीसरी दुनिया का ही अंग माना जाता है। फिदेल कास्त्रो क्यूबा क्रांति अग्रदूत माने जाते हैं, से 1955 में एक नवयुवक मुलाकात होती है।अर्जेंटीना से डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करके, आरामपसंद जीवन छोड़कर;अपने आसपास ग़रीबी और शोषण देखकर युवा चे का झुकाव मार्क्सवाद की तरफ़ हो गया और बहुत जल्द ही इस विचारशील युवक को लगा कि दक्षिणी अमरीकी महाद्वीप की समस्याओं के निदान के लिए सशस्त्र आंदोलन ही एकमात्र तरीक़ा है।

                       क्रांति में अहम भूमिका निभाने के बाद चे 31 साल की उम्र में बन गए क्यूबा के राष्ट्रीय बैंक के अध्यक्ष और उसके बाद क्यूबा के उद्योग मंत्री।1964 में चे संयुक्त राष्ट्र महासभा में क्यूबा की ओर से भाग लेने गए। चे बोले तो कई वरिष्ठ मंत्री इस 36 वर्षीय नेता को सुनने को आतुर थे। अर्नेस्टो चे ग्वेरा आज दिल्ली के पालिका बाज़ार में बिक रहे टी-शर्ट पर मिल जाएंगे, लंदन में किसी की फ़ैशनेबल जींस पर भी, लेकिन चे क्यूबा और दक्षिण अमरीकी देशों के करोड़ों लोगों के लिए आज भी किसी देवता से कम नहीं है। आज अगर चे ग्वेरा ज़िंदा होते तो 89 साल के होते, लेकिन चे को जब 9 अक्तूबर, 1967 को मारा गया उनकी उम्र थी महज़ 39 साल।
 

चे एक भावना है ,जो सम्राज्यवाद,पूंजीवाद,गरीबी के विरुद्ध और एक बेहतर समाज के लिए संघर्ष ओर प्रेरित करती है।


छह महीने पहले क्यूबा में हुई सशस्त्र क्रांति के बड़े नायक थे. सरकार के गठन के बाद राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो ने उन्हें तीसरी दुनिया के देशों से संबंध कायम करने का जिम्मा सौंपा। क्यूबा की क्रांति के दूत बनकर चे ने कई देशों की यात्रा की। भारत सरकार से उन्हें खास बुलावा था, जिसने फिदेल कास्त्रो की सरकार को फौरन मान्यता दी थी। मिस्र होते हुए चे गेवारा भारत आए। 30 जून, 1959 की शाम को हवाई अड्डे पर विदेश मंत्रालय के प्रोटोकॉल अधिकारी ने उनकी अगवानी की। चे की सुनहरे तारे वाली बगैर छज्जे की टोपी, लंबा सिगार और ऊंचे फीतों वाले जूते उन्हें बाकी लोगों से अलग करते थे। एक यंग मॉडर्न लड़का आज दो अलग-अलग संस्कृति वाले देशों को जोड़ने वाली कड़ी के रूप में भारत की धरती में उपस्थित था।

चे ग्वेरा  revolution 

  अपनी भारत यात्रा के दौरान चे जवाहरलाल नेहरू से मिलने को लेकर काफी उत्साहित थे फिर त्रिमूर्ति भवन में वो पल भी आया जब नेहरू से मिले भी। यात्रा को चे ने काफी निराशाजनक बताया और लिखा "मै खाने के टेबल पर नेहरू से मिला और पूरे समय मै मार्क्स और चीन के बारे में बात करता रहा लेकिन नेहरू बार-बार बात को नजरअंदाज कर,टेबल पर रखे गए व्यंजनों में ही उलझाने का प्रयास करते रहे। "

चे ग्वेरा प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी के साथ इमेज by google.com

 चे भारत को एक नए युग की शुरुआत की तरह मानते थे और साम्राज्यवाद का अंत करने के भारत के तरीके के कायल थे। चे के भारत-दर्शन में सबसे अहम एक बात यह थी कि उन्होंने बगैर झिझक, भारत की स्वतंत्रता में गांधीजी के ‘सत्याग्रह’ की भूमिका को पहचाना, रिपोर्ट में उनके अपने शब्द हैं - ‘जनता के असंतोष के बड़े-बड़े शांतिपूर्ण प्रदर्शनों ने अंग्रेजी उपनिवेशवाद को आखिरकार उस देश को हमेशा के लिए छोड़ने को बाध्य कर दिया, जिसका शोषण वह पिछले डेढ़ सौ वर्षों से कर रहा था। " चे मानते थे "गांधी जैसा नेता भारत के पास होना भारत के लिए किसी सौभाग्य से कम नहीं था और यही वो कारण है कि क्यों क्यूबा आज़ादी के लिए युद्ध को चुना और भारत अहिंसा के मार्ग पर चला। "

लेकिन चे की शख्सियत में संघर्ष की दास्तान भी बहुत लंबी है। एक मानवीय चेहरे के साथ, सत्ता धारण कर भले कुछ बदल गए। पर सियरा-माएस्त्रा की पहाड़ियों में, फिदेल के विमत के बावजूद, वे घायल दुश्मन को इलाज के लिए उठा लाते थे. एक दफा फिदेल ने कहा, इसे हमने घायल किया था, ठीक होकर यह हमीं पर बंदूक तानेगा; चे का जवाब था - तब देखेंगे. लड़ाई में जो कमजोर होगा, मारा जाएगा. सब जानते हैं कि एक मकसद के साथ चे ने घर छोड़ा, डॉक्टरी का पेशा छोड़ा, देश छोड़ा, सत्ता छोड़ी और दूसरों के लिए लड़ते हुए अंतत: दुनिया भी। ज्यां पॉल सार्त्र ने चे से मिलने के बाद उन्हें ‘हमारे दौर का सबसे पूर्ण मनुष्य’ कहा था।

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